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Monday, 21 March 2016

स्त्री-विमर्श और सामाजिक मीडिया : प्रोफ़ेसर (डॉ.) राम लखन मीना



स्त्री-विमर्श और सामाजिक मीडिया
प्रोफ़ेसर (डॉ.) राम लखन मीना

 सामाजिक मीडिया पारस्परिक संबंध के लिए अंतर्जाल या अन्य माध्यमों द्वारा निर्मित आभासी समूहों को संदर्भित करता है। यह व्यक्तियों और समुदायों के साझा, सहभागी बनाने का माध्यम है। इसका उपयोग सामाजिक संबंध के अलावा उपयोगकर्ता सामग्री के संशोधन के लिए उच्च इंटरैक्टिव प्लेटफार्म बनाने के लिए मोबाइल और वेब आधारित प्रौद्योगिकियों के प्रयोग के रूप में भी देखा जा सकता है। सामाजिक मीडिया की समालोचना विभिन्न प्लेटफार्म के अनुप्रयोग में आसानी, उनकी क्षमता, उपलब्ध जानकारी की विश्वसनीयता के आधार पर होती रही है। हालाँकि कुछ प्लेटफॉर्म्स अपने उपभोक्ताओं को एक प्लेटफॉर्म्स से दुसरे प्लेटफॉर्म्स के बीच संवाद करने की सुविधा प्रदान करते हैं पर कई प्लेटफॉर्म्स अपने उपभोक्ताओं को ऐसी सुविधा प्रदान नहीं करते हैं जिससे की वे आलोचना का केंद्र विन्दु बनते रहे हैं। वहीँ बढती जा रही सामाजिक मीडिया साइट्स के कई सारे नुकसान भी हैं। ये साइट्स ऑनलाइन शोषण का साधन भी बनती जा रही हैं। ऐसे कई केस दर्ज किए गए हैं जिनमें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का प्रयोग लोगों को सामाजिक रूप से हनी पहुँचाने, उनकी खिचाई करने तथा अन्य गलत प्रवृत्तियों से किया गया।
सामाजिक मीडिया के व्यापक विस्तार के साथ-साथ इसके कई नकारात्मक पक्ष भी उभरकर सामने आ रहे हैं। पिछले वर्ष मेरठ में हुयी एक घटना ने सामाजिक मीडिया के खतरनाक पक्ष को उजागर किया था। वाकया यह हुआ था कि उस किशोर ने फेसबूक पर एक ऐसी तस्वीर अपलोड कर दी जो बेहद आपत्तीजनक थी, इस तस्वीर के अपलोड होते ही कुछ घंटे के भीतर एक समुदाय के सैकडों गुस्साये लोग सडकों पर उतार आए। जब तक प्राशासन समझ पाता कि माजरा क्या है, मेरठ में दंगे के हालात बन गए। प्रशासन ने हालात को बिगडने नहीं दिया और जल्द ही वह फोटो अपलोड करने वाले तक भी पहुँच गया । लोगों का मानना है कि पारंपरिक मीडिया के आपत्तीजनक व्यवहार की तुलना में नए सामाजिक मीडिया के इस युग का आपत्तीजनक व्यवहार कई मायने में अलग है। नए सामाजिक मीडिया के माध्यम से जहां गडबडी आसानी से फैलाई जा सकती है, वहीं लगभग गुमनाम रहकर भी इस कार्य को अंजाम दिया जा सकता है। हालांकि यह सच नहीं है,अगर कोशिश की जाये तो सोशल मीडिया पर आपत्तीजनक व्यवहार करने वाले को पकडा जा सकता है और इन घटनाओं की पुनरावृति को रोका भी जा सकता है । केवल मेरठ के उस किशोर का पकडे जाना ही इसका उदाहरण नहीं है, बल्कि सोशल मीडिया की ही देन है कि लंदन दंगों में शामिल कई लोगों को वहाँ की पुलिस ने पकडा और उनके खिलाफ मुकदमे भी दर्ज किए और भी कई उदाहरण है जैसे बैंकुअर दंगे के कई अहम सुराग में सोशल मीडिया की बडी भूमिका रही । मिस्र के तहरीर चैक और ट्यूनीशिया के जैस्मिन रिवोल्यूशन में इस सामाजिक मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका को कैसे नकारा जा सकता है ।
सामाजिक मीडिया की आलोचना उसके विज्ञापनों के लिए भी की जाती है। इस पर मौजूद विज्ञापनों की भरमार उपभोक्ता को दिग्भ्रमित कर देती है तथा ऐसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स एक इतर संगठन के रूप में काम करते हैं तथा विज्ञापनों की किसी बात की जवाबदेही नहीं लेते हैं जो कि बहुत ही समस्यापूर्ण है। सामाजिक मीडिया अन्य पारंपरिक तथा सामाजिक तरीकों से कई प्रकार से एकदम अलग है। इसमें पहुँच ,आवृत्ति, प्रयोज्य, ताजगी, और स्थायित्व आदि तत्व शामिल हैं। इन्टरनेट के प्रयोग से कई प्रकार के प्रभाव होते हैं। निएलसन के अनुसार इन्टरनेट प्रयोक्ता अन्य साइट्स की अपेक्षा सामाजिक मीडिया साइट्स पर ज्यादा समय व्यतीत करते हैं। दुनिया में दो तरह की सिविलाइजेशन का दौर शुरू हो चुका है, वर्चुअल और फिजीकल सिविलाइजेशन। आने वाले समय में जल्द ही दुनिया की आबादी से दो-तीन गुना अधिक आबादी अंतर्जाल पर होगी। दरअसल, अंतर्जाल एक ऐसी टेक्नोलाजी के रूप में हमारे सामने आया है, जो उपयोग के लिए सबको उपलब्ध है और सर्वहिताय है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स संचार व सूचना का सशक्त जरिया हैं, जिनके माध्यम से लोग अपनी बात बिना किसी रोक-टोक के रख पाते हैं। यही से सामाजिक मीडिया का स्वरूप विकसित हुआ है।
समाज में यदि सच में ही समानता लानी है, तो मनुष्य को तन और मन से सभ्य होना पड़ेगा । केवल तन की सभ्यता नैतिकता, मानवता का अवमूल्यन मात्र है। याद कीजिये, क्या अपने कभी आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति को किसी बड़े आन्दोलन या सामाजिक बदलाव का नेतृत्व करते देखा है? राजा राम मोहन राय,बाल गंगाधर तिलक, सर सैयद अहमद खान, भीमराव अम्बेडकर,छत्रपति शाहूजी महाराज,ज्योतिबा फुले, मोहनदास करमचंद गाँधी, कांशीराम या महिलाओं में रज़िया सुल्तान, लक्ष्मीबाई, चाँद बीबी, सावित्रीबाई फुले, पंडिता रामाबाई, रकमाबाई, बेगम भोपाल, ज़ीनत महल कौन थे ये लोग ? ग़रीब-गुरबा? नहीं! सीधी सी बात है, समाज से भिड़ने के लिए और उसके दबाव को झेलने के लिए जो आर्थिक मज़बूती चाहिए, अगर वह नहीं है तो आपकी सारी क्रांतिजिंदा रहने की जुगत के हवाले हो जाती है।खुद को संभाल न पाने वाला इन्सान कैसे किसी आर्थिक-सामाजिक विरोध और असहयोग को झेलकर समाज से टकराएगा ? एक निराश्रित, भूखे, कमजोर से यह उम्मीद कि वह क्रांति की अलख जगाकर परिस्थितियां बदल दे, निहायत मासूमाना मुतालबा है। लेकिन इस मामले को अगर आप स्त्री-विमर्श के हवाले से समझें तो परत-दर-परत एक गहरी होशियारी और आत्मलोभ का कच्चा चिठ्ठा खुलने लगता है।
कौन नहीं जनता कि संपत्ति में बंटवारे को लेकर समाज कितना पुरुषवादी है। बेटियों को हिस्सा देने के नाम पर क़ानूनी बारीकियों के जरिये ख़ुद को फायदे में रखने की ख़ातिर कितने वकीलों-जजों को रोजगार मुहैया कराया जा रहा है और बेटी का हिस्सातिल-तिल कर दबाया जा रहा है। इसके बरक्स अगर आप पुरुषों के विमर्श और साहित्य की दुनिया पर नज़र डालें तो शायद ही कोई हो जो यह न मानता हो कि महिलाओं को सशक्तिकरण की ज़रूरत है। जो महिलावादी विमर्श-लेखन में नहीं हैं वे भी और जो बाज़ाब्ता झंडा उठाये हैं वे तो ख़ैर मानते ही हैं कि समाज में औरतों की हालत पतली है। आजकल तो पुरुषों द्वारा कविता-कहानी के ज़रिये भी स्त्रियों की दयनीयता को महसूसने की कवायद शुरू हो चुकी है। ऐसे में ज़रूरी हो जाता है कि इनसे कहा जाय कि ज़रा आत्मावलोकन करें।अब इस लेखन और स्त्री आन्दोलन में पुरुष सहयोग की भागीदारी उस स्तर पर है कि जिम्मेदारी भी डाली जाय। पिछले तीन-चार सालों से जब से महिला विषयक लेखन से जुड़ी हूँ, तब से ही कुछ ख़ास तरह के साहित्य और विमर्श से दो-चार हूँ। अक्सर तो लेखक-प्रकाशक टिप्पड़ी-समीक्षा के लिए किताबें भेज देते हैं। कुछ इन्टरनेट लिंक और साफ्ट कापी आदि भी आती रही है, जिनमें अक्सर कविताएँ मिलीं जो स्त्री और स्त्री-चरित्रों का आह्वान करती हैं। पिछले लगभग एक साल से ऐसे निजी और सामुदायिक ब्लॉगों की भी भरमार हैजिनमें स्त्री-केन्द्रित कविता-कहानी-विमर्श छाया हुआ है। कुछ कविताएँ अपपनी माँ, नानी, दादी वगैरह को मुखातिब हैं उनकी ज़िन्दगी के उन पहलुओं और हादसों को याद करती हैं जब उन्हें सिर्फ़ बेटी, बहू, माँ, बहन समझा गया, लेकिन इन्सान नहीं। जो ख़ानदान में तयशुदा किरदारों में ढल गयीं और भूल गयीं कि वे अपने आप में एक इन्सान भी हैं। जिनके होने से परिवार-खानदान की कई जिंदगियां तो संवर गईं लेकिन खुद उनका वज़ूद मिट गया। कुछ और इसी तरह के स्त्री-विमर्श पर नज़र डालूं तो,पुरुष-लेखकों का एक और वर्ग है जो अनुभूति के स्तर पर स्त्री-मनमें प्रवेश कर, वहाँ उतर जाता है जहाँ से वे खुद औरत बनकर दुनिया देख रहे हैं। उनके भीतर की स्त्री के नजरियों को लेखनी में उतरना और फिर उन बारीकियों को आत्मसात करना।
आज समाज में जिन स्रोतों से ताकत, सम्मान, आत्मविश्वास हासिल किया जाता है,स्त्री  को भी ज़रूरत उन्हीं की है न कि  दैहिक चिंतन के चक्रव्यूह में फंसकर असली मुद्दों से भटकने की। जो पुरुष-समाज स्त्री-मुक्ति-विमर्श में शामिल है, उनसे दो टूक सवाल है कि पिता-भाई के रूप में क्या आपने अपनी बेटी और बहन को परिवार की जायदाद में हिस्सा दिया या कन्नी काट गए? अगर पिता-भाई के रूप में पुरुष ईमानदार और न्यायप्रिय नहीं है तो उनकी बेटियां-बहनें अबलायें ही बनी रहेंगीं। पति-ससुराल और समाज में हैसियत-हीन बनने की प्रक्रिया मायके से ही शुरू होती है जब– (1) विवेकशील होने के लिए शिक्षा नहीं मिलती। (2) आत्मविश्वासी होने के लिए आज़ादी नहीं मिलती। (3) आत्मनिर्भर होने के लिए परिवार-पिता की जायदाद में हक़ बराबर हिस्सा नहीं मिलता। ये तीनों धन बेटियों को पीहर में मिलने चाहिए। अगर औरत इनसे लैस है तो ससुराल-पति क्या पूरे समाज के आगे ससम्मान ज़िन्दगी तय है लेकिन अगर पिता ही ने उसे इनके अभाव में अपाहिज बना दिया है तो क्या मायका, क्या ससुराल और क्या बाहर की दुनिया- सभी जगह उसे समझौते ही करने हैं और आत्मसम्मान, आत्मविश्वास, आत्मनिर्भरता पर कितने ही प्रवचन उसका कोई भला नहीं कर सकते। साहित्य-जगत में स्त्री-सबलीकरण पर आप अगली बार जब भी सोचें, कृपया यहीं से सोचें कि खुद आपने अपनी बेटी-बहन-पत्नी को परिवार की संपत्ति में हक़ बराबरहिस्सा दिया क्या? क्योंकि मध्यवर्ग में स्त्री-शिक्षा पर चेतना तो कमोबेश आ गयी है, दूसरी तरफ सरकारी नीतियों की वजह से भी लड़कियों की शिक्षा आगे बढ़ी है लेकिन मर्द की जहाँ अपनी ताक़त-हैसियत में निजी स्तर पर भागीदारी की बात आती है, वह सरासर मुजरिम की भूमिका में है। तब वह दहेज़,भात, नेग आदि कुरीतियों की आड़ में छुपकर मिमियाता है कि हम बहन-बेटी को ज़िन्दगी भर देते ही हैं। बेटी को दहेज़-भात-नेग में टरकाने वाले यह सब खुद रख लें अपने लिए और जो अपने लिए जायदाद दबा रखी है वह बेटियों-बहनों को दे दें तो चलेगा?
स्री-विमर्श पर साहित्य सृजन की प्रवृत्ति व्यापक होने लगी। स्त्री-विमर्श पर चर्चा करने से पहले हमें देखना होगा कि साहित्य का उद्देश्य क्या होना चाहिए। स्त्री लेखन या स्त्री के लिए साहित्य लेखन। यदि स्त्री की स्थिति को गंभीर चिंता का विषय मानकर साहित्य सृजन को स्त्री लेखन का नाम दिया जाए तो यह केवल साहित्य के एकांगी पक्ष को ही प्रतिफलित करेगा। अगर हम नारी उत्थान एवं मुक्ति की बात करें तो हमारा वांग्मय स्री-लेखन स भरा हुआ है। उपनिषद, कथा सरित सागर, पंचतंत्र से लेकर रामायण, महाभारत में स्त्री जाति के उत्थान को प्रेरित करने वाले साहित्य से भरा हुआ है। भारतीय समाज में स्त्री की स्त्री की स्थिति का अति गंभीरता से चिंतन हुआ है। प्रेमचंद एवं प्रेमचंदोत्तर साहित्य में नारी की स्थिति का विस्तार से वर्णन हुआ। प्रेमचंद के सभी उपन्यासों के नारी पात्र सामाजिक विसंगतियों से जूझते मिलेगें। बड़े घर की बेटी, अलगोझ्या, कफ़न, जैसी प्रेमचंद की कहानियों में नारी की वेदनामय स्थिति का चित्रण हुआ है। प्रेमचंद के समकालीन प्रसाद की आकाशदीप, मधुलिका जैसी कहानियों में नारी के त्याग, उदात्त रूप का चित्रण मिलता है। प्रेमचंदोत्तर साहित्यकारों में जैनेन्द्र कुमार, यशपाल, भगवतीचरण वर्मा, शिवपूजन सहाय की रचनाओं में नारी की वेदनामय स्थिति का चित्रण मिलता है। मैं यहां यशपाल की दिव्या, भगवतीचरण वर्मा की चित्रलेखा का जिक्र कर देना जरुरी समझता हूं। नारी वेदना  से जुड़े सवालों का जवाब समय रहते नहीं मिला तो आने वाला समय किसी को माफ़ नहीं करेगा ।




Sunday, 20 March 2016

Role of Hindi for being India is an emerging super power : Professor Ram Lakhan Meena, Central University of Rajasthan, Ajmer



Role of Hindi for being India is an emerging super power

Professor Ram Lakhan Meena, Central University of Rajasthan, Ajmer

 

 

The Indian Hindi Media and Entertainment (M&E) industry is a sunrise sector for the economy and is making high growth strides. Proving its resilience to the world, the Indian M&E industry is on the cusp of a strong phase of growth, backed by rising consumer demand and improving advertising revenues. The industry has been largely driven by increasing digitization and higher internet usage over the last decade. Internet has almost become a mainstream media for entertainment for most of the people. The Indian media & Entertainment sector is expected to reach US$ 100 billion by 2025 and Hindi media play a crucial role with highest, from its estimated size of US$ 17.85 billion in 2015, due to its large capacity to consume new products and businesses. In 2015, the overall Media and Entertainment industry grew 11.7 per cent over 2014. The largest segment, India’s television industry, is expected to maintain its strong growth momentum led by subscription revenues, representing a year-on-year growth of about 13.2 per cent to reach Rs. 60,000 crore (US$ 9 billion) in 2015. Significantly, with the increased penetration of smartphones and expansion of 3G/4G network in India, the country is likely to see around nine billion mobile application (apps) downloads during 2015, which is five times more than 1.56 billion in 2012.
This uptick in app-downloads is also expected to increase the revenue from paid apps to an estimated over US$ 241.16 million as against US$ 144.7 million in 2014. Industry estimates reveal that video games industry grew at a record 22.4 per cent in 2014 over 2013; wherein its net worth rose to US$ 392 million. The Indian animation industry was valued at US$ 748 million in 2014 and is forecasted to grow at 15-20 per cent per annum. The Foreign Direct Investment (FDI) inflows in the information and broadcasting (I&B) sector (including print media) in the period April 2000 – September 2015 stood at US$ 4.28 billion, as per data released by Department of Industrial Policy and Promotion (DIPP). The Indian luxury market is estimated to be worth US$ 18 billion by 2017 from the current level of US$ 14 billion with unprecedented growth in luxury categories including fashion, automobiles and fine dining. With increasing brand awareness and rising purchasing power amongst the youth, especially in tier II and tier III cities, spending by Indian consumers is expected to grow four times to US$ 4.2 trillion by 2017.
Indubitably the English has taken its position in the roots of the community. And the people are following the trend "the brighter ,the better". Even to have a foreign accent is considered to be a part of the modernization or the symbol to commensurate coolness. But the fact is apart from the cooperate life ,the immense pleasure can only be felt in using mother tongue. As the language is something beyond the medium of communication and that usually remain dissolved in the culture. Culture is the part of the life. Hence because of being a chauvinist or believing in social contradiction ,i really expect or hope a bright future of Hindi. With the growing influence of Hindi, the increasing popularity of Bollywood and the sheer richness of Indian culture across the globe, Hindi will soon overtake Chinese as the most spoken language in the world. Do you think that someday in the far future it might even break records and give English, the most global language of them all, a run for its money? Is Hindi the new French? 

Recent development/Investments

  • Reliance Entertainment (owned by Mr Anil Ambani) and DreamWorks (led by Mr Steven Spielberg), along with Participant Media (led by Mr Jeff Skoll) and Entertainment One (eOne) have formed a new film, television and digital content creation company called ‘Amblin Partners’, and have raised US$ 500 million in debt to develop and produce films.
  • Scoop Whoop, an Indian digital media and content start-up, has raised US$ 4 million from Kalaari Capital and plans to use the funds for expansion of its video production unit called Scoop Whoop Talkies.
  • Mobvista International Technology Ltd, a global mobile advertising and game publishing company, plans to increase its investment in India by US$ 100 million over 2015-18, with a view to capture a bigger share of the booming e-commerce and ad-tech space.
  • The digital arm of New Delhi Television Limited (NDTV) namely NDTV Convergence, that owns and operates the NDTV group's digital properties, has signed a deal worth US$ 13-15 million with content discovery platform Taboola.
  • Cinepolis India Private Limited, the Indian movie exhibition arm of Mexican chain Cinepolis, has plans to add 60 screens to take its total count to over 250 screens by the end of 2015.
  • Turner International India has announced the expansion of its television bouquet for children with the launch of Toonami, a channel dedicated to animated action. This is the American company’s third children’s channel in India after Cartoon Network and POGO. Toonami joins an assortment of over 15 channels in the kids’ genre, which attracts close to Rs 500 crore (US$ 75.32 million) in advertising.
  • San Francisco-based Twitter Inc. plans to set up a research and design (R&D) centre in Bengaluru to grow faster in emerging markets. This will be Twitter’s first such facility outside the US.
  • STAR India, a unit of 21st Century Fox, acquired the entire broadcast business of MAA Television Network Limited for an undisclosed amount.
  • Carnival Films Private Limited acquired Stargaze Entertainment Private Limited, a multiplex company, from a unit of Mukesh Ambani-controlled Network18 Media and Investments Limited.

Government Initiatives

The Government of India has supported Media and Entertainment industry’s growth by taking various initiatives such as digitizing the cable distribution sector to attract greater institutional funding, increasing FDI limit from 74 per cent to 100 per cent in cable and DTH satellite platforms, and granting industry status to the film industry for easy access to institutional finance. Recently, the Indian and Canadian governments have signed an audio-visual co-production deal that would help producers from both countries to explore their technical, creative, artistic, financial and marketing resources for co-productions and, subsequently, lead to exchange of culture and art amongst them. Furthermore, the Centre has given the go-ahead for licences to 45 new news and entertainment channels in India. Among those who have secured the licenses include established names such as Star, Sony, Viacom and Zee. Presently, there are 350 broadcasters which cater to 780 channels. “We want more competition and we wanted to open it up for the public. So far, we have approved the licenses of 45 new channels. It’s a mix of both news and non-news channels,” said Secretary, Ministry of I&B, Government of India.
The radio industry is expected to witness growth opportunities after the Phase III auction of 839 radio channels in 294 cities, expected to complete later this year. The Phase III auction, which started in July 2015, is expected to bring in an estimated US$ 390 million in revenue to the government. With over 800 frequencies up for auction in third- and fourth-tier towns, radio is likely to match the reach of print. The Union Cabinet chaired by the Prime Minister has given its approval for entering into an Audio-Visual Co-Production Agreement between India and the Republic of Korea (RoK) and to complete internal ratification procedure, to enable the agreement to come into force. Cooperation between the film industries of the two countries will not only promote export of Indian films but would also act as a catalyst towards creating awareness about India and its culture.
The Indian Media and Entertainment industry is on an impressive growth path. The revenue from advertising is expected to grow at a CAGR of 13 per cent and will exceed Rs 81,600 crore (US$ 12.29 billion) in 2019 from Rs 41,400 crore (US$ 6.24 billion) in 2014. Internet access has surpassed the print segment as the second-largest segment contributing to the overall pie of M&E industry revenues. Television and print are expected to remain the largest contributors to the advertising pie in 2018 as well. Internet advertising will emerge as the third-largest segment, with a share of about 16 per cent in the total M&E advertising pie. The film segment which contributed Rs 12,640 crore (US$ 1.90 billion) in 2014 is projected to grow steadily at a CAGR of 10 per cent on the back of higher domestic and overseas box-office collections as well as cable and satellite rights. Digital advertising is expected to lead the CAGR with 30.2 per cent, followed by radio with 18.1 per cent. Animation and VFX, and television are expected to register a CAGR of 16.3 per cent and 15.5 per cent respectively, followed by growth rates of gaming (14.3 per cent), music (14.0 per cent), films (10 per cent) and OOH with 9.8 per cent expected CAGR. Within TV, subscription revenues are expected to be three times more than advertising revenues, by 2018. Growth in the regional reach of print and radio shall provide opportunities to further improve the advertisement revenue.
Just finished reading a somewhat alarmist article in the Indian national newspaper, The Times of India, entitled Does Hindi have a future? In that article, the fate of Hindi in the Indian urban landscape is considered precarious; the writer, Mohammed Wajihuddin, asserts that “An unsettling reality of metros and towns of India is that Hindi is slowly becoming an alien language.” That, in the writer’s words, is the “unkind truth” of our day. Wajihuddin next goes on to “show” how academic interest in Hindi has declined over the years, quoting a former Mumbai University (in a region not a part of the “Hindi belt”) teacher who notes that the number of students enrolling in graduate programs in Hindi there has halved since the 90s. The decline of Hindi is bemoaned in other settings as well; an anecdote the writer provides as a case in point
The under development of Web in Indian regional languages is one of the important reasons behind the limited growth of Internet in India. This fact is now being realized by many CEOs of established Internet companies here. Sanjeev Beekchandani of Naukri.com has started the Hindi version of his matrimonial portal Jeevansathi.com. Microsoft is going to launch the Hindi version of MSN and hotmail. MSN`s programming head Krishna Prasad says, `80 percent of Indians don`t understand English. So, it is a must for us to enter in this medium.`  Microsoft has many plans for Hindi. A recent survey by a Delhi based research organisation - Juxt Consult - says that 44 % of existing Internet users in India prefers Hindi to English, if made available. Similarly 25% existing Internet users prefer other regional languages. Internet Companies understand this attitude of Indian users. Microsoft`s Bhasha India is doing lot of job in Indian regional languages. Delhi based Indic is also doing small but very promising effort in developing Hindi on the web. The company has started a Hindi search engine and is going to develop it in other regional languages. Many big companies like Google, Yahoo and Sify are also taking big steps in Hindi and other regional languages.
Not everyone believes the language is dying, however, as Wajihuddin notes; a Hindi “optimist,” Prasoon Joshi, thinks all is not lost, that there is hope to salvage the language, saying: “Yes, Sanskritised Hindi of Doordarshan [the government-run national television channel] is dying and it should die.” His point is clearly directed at the increasing popularity in the last decades of “Hinglish,” and the increase in less formal structures in Hindi popularspeak. The language, if it is able to adapt to an increasingly Anglicized world, and rid itself of the rigors of Sanskritic formality, will not only survive but flourish. The overall tone of the article, however, indicates that Hindi is endangered.
There are too many comments I am tempted to make here, but for the sake of brevity, I am going to address only a few. Let me start with a Forbes article published two days ago, entitled the Bleak Future of English, asserting that the increased thrust in education across India will result in greater Hindi usage, and diminish the number of English speakers there. The article goes on to note that since English is the second language of many speakers across the globe, the first languages are not endangered, a point that Wajihuddin totally misses.One count puts the number of first language speakers of Hindi at a reasonably respectable 180 million people, a fact Wajihuddin neglects to mention as well. He is not alone in his beliefs that Hindi is endangered; politicians and scholars are commonly quoted in the news media lamenting the rapid decline in Hindi usage. However, the alarm bells are rung regarding its usage in towns and cities, where people have become increasingly bilingual in Hindi and English, not monolingual in English. Hindi continues to thrive in the heavily populated rural areas of the “Hindi belt” and beyond.
My own observations lead me to believe that there is a popular decline in “Sanskritised” Hindi use, but that doesn’t automatically mean that English (that dreaded colonial inheritance!) is being increasingly incorporated into the language; popular Hindi has adopted a lot of Urdu vocabulary as well. The adaptability and elasticity of the language, as Joshi notes, will help it survive. I think scaremongers are generally more troubled about the survival of “pure” Hindi than about the survival of Hindi. There is plenty to comment about the question of “purity,” but I will have to reserve detailed comments for another posting: as a Native Speaker and former teacher of Hindi (I taught it over five semesters at Cal), I have many mixed feelings on the issue. Briefly, I believe linguistic purism is principally rooted in nostalgia, and while I totally understand that sentiment, I also feel that it sometimes leads to blinkered perspectives (e.g. failing to recognize recognizing popular varieties as legitimate), that is, resistive linguistic snobbery. I have no doubt Hindi will survive. It may not remain the literary Hindi of yore, but it’ll be a Hindi of the people. Let’s not ring the death knell for Hindi yet. Details of existing and new items (schemes) proposed to be indicated below:-
i)                   Development and promotion of Modem Indian Languages through research, training, material production etc.
ii)                 Scheme of Regional Languages Centres for training the
iii)              Scheme of finacical assistance to NGO and individuals for selected promotional activities including publications and purchase of books for the promotion of Indian languages other than Hindi, Urdu and Sindhi.
iv)               Scheme of setting up of National Centre for Translation and simultaneous interpretation.
v)                 Scheme of development of common core grammar of Indian languages for MT system.
vi)               Scheme of development of tribal languages etc.
With the immense popularity and international importance of our national language, there is also a growing vista of employment in the field of Hindi language. In different departments of the Central government, State governments (in Hindi speaking States), it is mandatory to work in Hindi language. So there are various posts like Hindi Officer, Hindi Translator, Hindi Assistant, Manager (Official language) in different departments and units of Central / State governments. The opportunities have increased manifold with the advent of private TV and Radio channels and launch of Hindi versions of established magazines / newspapers. In the field of Hindi media, there is a need for Editors, Reporters, Correspondents, Sub Editors, Proof Readers, Radio Jockey, Anchors etc. A Degree / Diploma in Journalism / Mass Communication along with academic qualification in Hindi is an added advantage for job seekers. One can serve the mediums of Radio / TV / Cinema as a Script Writer / Dialogue Writer / Lyricist. This field necessitates a natural and artistic mastery of creative writing. But a degree / diploma in creative writing will enhance one’s style of writing. This includes translation of the works of eminent International writers into Hindi and also those of Hindi writers into English and other foreign languages. There is also the work of translating scripts of films / advertisements into Hindi/ English. But bi-lingual efficiency is the essence of this field. One can earn one’s livelihood as a freelance translator and can also set up one’s translation firms. Such firms take up assignments on contract basis and provide employment to many professional translators. There are also opportunities of translation projects from foreign agencies. The task can be easily done through internet.
There is a job opportunity in foreign countries for the Post Graduates in Hindi language, especially those who have completed their Ph.D. Scope of teaching Hindi language and linguistics in foreign universities is increasing tremendously after it has been recognized as a language of business by some foreign countries. One can always choose the traditional option of teaching Hindi at schools, colleges & universities as teacher and professor in India Field in which employment opportunities can be explored in Hindi. Candidates with degree or PG in Hindi with working knowledge of Hindi can find the following job opportunities in different capabilities:
·         Academics
·         Media
·         Creative writing
·         Foreign jobs/interpreter in embassies
·         Translation jobs in media and other sectors
·         Administrative positions in public or government sector organizations
This is worth mentioning that there is a growing interest among our foreign counterparts to understand the rich Indian culture. That is why many foreign countries have established centres of learning to promote Indian studies. Apart from offering courses on Indian Religion, History and Culture, these centres also offer courses in several Indian languages like Hindi, Urdu and Sanskrit. In the globalisation and privatisation scenario, growing business relations of India with other countries have been necessitating the need of cross-learning of the languages of the concerned business partner countries. This development has added to the popularity of Hindi as a popular and easy to learn Indian language in other countries. Some schools in US have decided to introduce Hindi as a foreign language along with French, Spanish and German. Hindi has earned a global recognition for itself in linguistic arena. India offers huge business potential for online advertising industry with rising population, growing income level and changing lifestyle. With increasing number of educated people and migration to urban areas, increase adoption in Internet and online advertising is being witnessed. Despite the growth, many challenges continue to plague the industry such as underdeveloped infrastructure and lack of faith of both advertisers and audiences, hence, Hindi being a most scientific language in the world have bright future.