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Friday, 24 April 2020

‘द ड्रीमलैंड एकेडमी’ फ़ॉर आरएएस / आईएएस कोचिंग, जयपुर


द ड्रीमलैंड एकेडमीफ़ॉर आरएएस / आईएएस कोचिंग
नामकरण और मिशनरी एप्रोच 
जीवन का महत्व तभी है, जब वह किसी महान ध्येय के लिये समर्पित हो। यह समर्पण, ज्ञान और न्याययुक्त हो।’ 15 जनवरी 1931 को शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने युवाओं को संबोधित ड्रीमलैंड - एक परिचयनामक लेख लिखा था, जो उनकी समझ, गहन अंतर्दृष्टि, गहरी संवेदना और सृजनात्मक विवेक का श्रेष्ठ उदाहरण है। यही ड्रीमलैंड एकेडमी की आधार भूमि है जिसमें युवाओं के भविष्य को संवारने का सायास प्रयास किया जा रहा है। ऐसे में, ‘द ड्रीमलैंड एकेडमीका उद्देश्य जमीनी स्तर पर प्रतिभाओं को तराशना, उनमें उनके हुनर के मुताबिक कौशल विकसित करना और उनके भविष्यगामी विकास का समर्थन करना है। 
मिशनरी एप्रोच के रूप में उत्कृष्ट कोचिंग मानदंडों को संस्थापित करना द ड्रीमलैंड एकेडमीका प्रमुख ध्येय है। वर्तमान परिस्थितियों में कोचिंग संस्थानों की लूट से पनपी शून्यताओं और रिक्तता को भरने का प्रयास है। द ड्रीमलैंड एकेडमीएक नए और बेहतर स्वीकृत आधार पर करियर के सुव्यवस्थित पुनर्निर्माण की कार्ययोजना अंतर्निहित है। ताकि जब देश के युवा अपने कौशल और क्षमता का पूरी तरह उपयोग करेंगे तो देश निश्चित रूप से विकास और उन्नति करेगा और इसे दुनिया भर में एक नई पहचान मिले। इसीलिए इमन्स ने कहा है कि यदि आपको रास्ते का पता नहीं है तो जरा संभलकर चलें, महान ध्येय (लक्ष्य) महान मस्तिष्क की जननी है।
हर व्यक्ति का अपना अपना व्यक्तित्व है, वहीं उनकी पहचान है। अनेकानेक मनुष्यों की भीड़ में भी वह अपने व्यक्तित्व के कारण पहचान लिया जाता है। यही उसकी विशेषता है, यही उसका व्यक्तित्व है। महान दार्शनिक सुकरात ने भी यही कहा था कि अपने को पहचानो।व्यक्तित्व किसी को भी उत्तराधिकार में नहीं मिलता है, बल्कि व्यक्तित्व निर्माण में संयम एवं परिश्रम का स्थान सबसे महत्वपूर्ण है। यही चरित्र का मूल मंत्र है। संयमशीलता और परिश्रम की पराकाष्ठा सफलता की जननी है। 
आत्मविश्वास के बिना आत्म-संयम असंभव है। प्रतिस्पर्धा में सफलता व्यवस्थित अध्ययन और उत्कृष्ट तन्मयता से मिलती है। समय की गतिशीलता को पहचान कर मनुष्य यदि उसके समक्ष आये अवसरों को पकड़ लेता है और अपनी योग्यता को प्रदर्शित करता है तो अवश्य ही वह अपने जीवन को संभार लेता है। इसमें परिश्रम की ईमानदारी सबसे जरूरी है । जिस व्यक्ति में ईमानदारी से कार्य करने की क्षमता हो, वह निश्चित रूप से आगे बढ़ेगा और उन्नति के नए मार्ग प्रशस्त करेगा। ऐसे व्यक्ति को कोई भी परिस्थिति आगे बढ़ने से रोक नहीं सकती, हो सकता है थोड़ी देर हो। 
प्रतियोगी युग में आपकी एकाकी समझ, गहन अंतर्दृष्टि, गहरी संवेदना, अपने परिजनों के दिव्य-स्वप्न और अध्ययनशील विवेक के साथ आगे बढ़ना होता है। इसलिए आपके समक्ष इन चुनौतियों का सामना करने के अलावा कोई विकल्प नहीं रह जाता है। ऐसे में, ‘द ड्रीमलैंड एकेडमीदिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और विभिन्न आइआइटीज, आइआइएमस तथा केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अध्ययन-अध्यापन कर चुके शिक्षकों के मार्गदर्शन तथा कुशल नेतृत्ववाली टीम है जिसने प्रतियोगिताओं के दृष्टिकोण और स्वभाव (नेचर) को बखूबी परखा-समझा है, उसकी तह में जाकर विद्यार्थियों की मदद की है। एकेडमी की अधिकांश शख्सियतें खुद एक ग्रामीण परिवेश से जुड़े रही हैं, बुद्धिजीवियों और एक्टिविस्ट के रूप में समाज को कुछ देना चाहते हैं। उनकी यह पहल प्रतियोगी मानदंडों पर कितनी खरी उतरेगी इसकी परख आपको ही करनी है। हम केवल एक माध्यम हैं।   
कोई भी परीक्षा, परीक्षार्थी और परीक्षक की कल्पनाओं के परीक्षण का माध्यम है। वस्तुतः परीक्षा किसी को सफल बनाने के लिए नहीं अपितु सफलता पाने से रोकने या उस में बाधा उत्पन्न करने की साजिश है और हर एक परीक्षार्थी को इन बाधाओं की वैतरणी को पार करना होता है। इसमें हर व्यक्ति को अपने को पहचानना होता है। अपनी सीमाओं और खूबियों को परखना होता है। तब जाकर कहीं उन्हें सफलता मिलती है। इसका अपना सौंदर्य और आकर्षण है। हर एक परीक्षार्थी की नींव मजबूत होनी चाहिए क्योंकि नींव मजबूत होने से ही वह अपने सीने पर विशाल, भारी-भरकम निर्माण का बोझ खुशी-खुशी सह लेता है। इसलिए, पालो आश्रय कष्ट सहने का, मत करो ईर्ष्या शीश पर चढ़े पत्थरों से, अपने से अधिक बुद्धिमान सहयोगियों से, और बिना किसी भय के जोखिम भरी जिंदगी और सुप्त इच्छाओं का रस लेकर अपने मनोबल की पराकाष्ठा के साथ जंग में कूद पड़ो, परिणाम की परवाह किए बगैर क्योंकि भाग्य सदैव बहादुरों का साथ देता है।
अपने लक्ष्यों को पाने के लिए अगर जरूरत हो तो उग्र बनो ऊपरी तौर पर, लेकिन हमेशा नरम रहो अपने दिल में, अगर जरूरत हो तो फुंफकारो पर डसो मत, दिल में प्यार को जिंदा रखो और लड़ते रहो एक योद्धा की तरह। निर्माण के लिए ध्वंस जरूरी नहीं, अनिवार्य है। परीक्षाओं में सफलता कभी भी कमजोर साधनों या अधकचरे विषय-विशेषज्ञों के नोट्स से नहीं मिल सकती बल्कि उसे ज्ञान के साथ अंदर से प्रस्फुटित और विकसित होना चाहिए और यह तब होगा जब व्यवस्थित ढंग से आगे बढ़ने के लिए आपको एक समर्पित कोचिंग की सबसे अधिक जरूरत है, जिसके पास ऐसे शिक्षक चिंतक और मार्गदर्शक हों जिनके दिलों-दिमाग साफ एवं तेजतर्रार हो, विषय की तीखी एवं बखूबी पकड़ हो और पहल करने तथा प्रतियोगी छात्र के मन मस्तिष्क को परखने की व्यापक क्षमता हो। 
साथ में, सर्वश्रेष्ट अनुशासन और उद्देश्यों के प्रति समर्पण हो। युवावस्था मानव जीवन का बसंतकाल है उसे पाकर हर मन मतवाला हो जाता है। धराड़ी (प्रकृति) की दी हुई सारी शक्तियां सहस्त्रधारा होकर फूट पड़ती है। उज्जवल प्रभात की शोभा, स्निग्ध संध्या की छटा, प्रलय कालीन प्रबल-प्रभंजन प्रचंड युवाओं में विद्यमान है। युवावस्था देखने में तो शस्य-श्यामला वसुंधरा से सुंदर है, पर इसके अंदर भूकंप की सी भयंकरता भरी हुई है। इसलिए युवावस्था में मनुष्य के लिए केवल दो ही मार्ग है- वह चढ़ सकता है उन्नति के सर्वोच्च शिखर पर या वह गिर सकता है अध:पात के अंधेरे खंदक में। विशेष रूप से दीर्घकालिक लक्ष्यों के अनुसरण में सबसे कठिन बात प्रेरित बने रहना ही है। प्राप्त किये जा सकने वाले उप-लक्ष्य बनाना और प्रगति पर नजर रखना दोनों ही आपके लिए मददगार होते हैं। 
इसलिए ही युवाओं के प्रेरणास्त्रो‍त, समाज सुधारक युवा युग-पुरुष 'स्वामी विवेकानंद' ने कहा है कि 'उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए।' शहीद शिरोमणि भगत सिंह के सपनों का इंडिया बनाने हेतु युवा दिमाग को प्रोत्साहित और सशक्त बनाने के उद्देश्य से द ड्रीमलैंड अकैडेमीने एक कदम बढ़ाया है, जिसमें नो प्रॉफिट-नो लोसके सिद्धांतों के अनुरूप न्यूनतम फी-स्ट्रक्चर के साथ युवाओं और युवतियों के मार्गदर्शन का बीड़ा उठाया है। इसमें लड़कियों को सशक्त बनाने के इरादे से उनकी फ़ीस में 10% कम रखी जायेगी। अत: द ड्रीमलैंड अकादमी की मिशनरी एप्रोच  का उद्देश्य जमीनी स्तर पर ग्रामीण और शहरी प्रतिभाओं का विकास, प्रोत्साहन और मार्गदर्शन करना है। 

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