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Monday 10 September 2018

मीणा भाषा : एक वर्णात्मक अध्ययन ( Descriptive study of Mina / Meena Language )


मीणा भाषा : एक वर्णात्मक अध्ययन
 प्रोफेसर राम लखन मीणा, राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय, अजमेर 

पूर्वी राजस्थान के दौरना, सवाई माधोपुर करौली, भरतपुर के पश्चिमी भाग, टोंक के पूर्वी भाग, बूँदी, कोटा के एक तिहाई भाग, बारां के दो तिहाई भाग तथा झालावाड़ जिले इसके भाषायी क्षेत्र हैं। साथ ही, भीलवाड़ा के जहाजपुर, कोहड़ी, मांडलगढ़, चित्तौड़गढ़ के मेनार्ल और बेग में भी इसका एक अन्य रूप प्रचलन में हैं। इसके पूर्व में राजस्थानी ब्रज, उत्तर में मेवाती, उत्तर पश्चिम में तोरावाटी, पश्चिम में जयपुरी, दक्षिण पश्चिम में किशन गढ़ी और हाड़ौती दक्षिण में मालवी, दक्षिण पूर्व में बूँदेली और सहरी का भाषायी क्षेत्र है।
मीणा भाषा प्राचीन काल से अपनी भाषिक विशिष्टताओं को धारण किये हुये हैं किंतु दुर्भाग्य से किसी भी भाषाविद या शोधार्थी ने इसकी विशिष्टताओं पर ध्यान नहीं दिया। कारण जो भी रहें हो, किंतु, विश्व की भाषाओं में मीणा भाषा का नामोल्लेख जरूर मिलता है। मीणा भाषा पर व्यापक शोधकार्य की जरूरत है जिससे इसके स्वरूप पर गहनता से प्रकाश डाला जा सके। प्रोफ़ेसर राम लखन मीणा द्वारा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नई दिल्ली में प्रस्तुत किये गये राजस्थान के भाषा.भूगोल सर्वे के दौरान क्षेत्रीय स्तर भेद भी परिलक्षित हुये है जिनमें झालावाड़ क्षेत्र की मीणा भाषा, सवार्र माधोपुर क्षेत्र की मीणा भाषा, दौसा जयपुर क्षेत्र की मीणा भाषा के रूप स्थानीय भेड़ों के साथ  मिलते हैं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं पूर्व पीठिकाः
अब तक यूरोपीय और भारतीय भाषविद् मोटे तौर पर मीणा भाषा को हाड़ोती या जयपुरी समूह की बोलियों में ही समाहित करते आ रहे हैं जो कि तार्किक और भाषावैज्ञानिक दृष्टि से न तो तर्कसंगत है और न ही ऐतिहासिक। मीणा समुदाय द्वारा भाषा जाने वाली भाषा/भाषा/ एक भाषा का नाम बोध कराने के लिए यह नाम इस दृष्टि से प्रकल्पित किया है, जिससे एक ओर हाड़ोती तथा दूसरी ओर जयपुरी और ढूँढ़ाड़ी से इसकी भिन्नता स्पष्ट जाहिर हो जाय। मीणा1 राजस्थानी भाषा की एक प्रमुख उपभाषा (भाषा) है जो कि मारवाड़ी के बाद राजस्थान में सर्वाधिक भाषा जाती है। इसका भाषायी क्षेत्र पूर्वी राजस्थान के झालावाड़ जिले के खानपुर कस्बे से लेकर सुदूर उत्तरी.पूर्वी राजस्थान के अलवर.भरतपुर जिलों तक फैला हुआ है। चूंकि मीणा आदिवासी राजस्थान की प्रमुख प्राचीन आदिवासियों में से एक हैं। अतः राजस्थान में बसने वाले आदिवासियों में मीणा आदिवासी की जनसंख्या सर्वाधिक है। इस भाषा का प्रसार झालावाड़, कोटा, बारॉ जिले के कुछ भाग बूँदी, टोंक, सवाई माधोपुर, करौली, धौलपुर जिले का कुछ भाग, दौसा, अलवर, भरतपुर जिले का कुछ भाग तथा जयपुर जिलों में प्रमुख रूप से है।
आलोच्य सर्वेक्षण के दौरान पाये गये भाषिक तत्वों के आधार पर पूर्वी राजस्थान सवाई माधोपुर करौली, भरतपुर के पश्चिमी भाग, टोंक के पूर्वी भाग, बूँदी, कोटा के एक तिहाई भाग, वारा के दो तिहाई भाग तथा झालावाड़ जिले इसके भाषायी क्षेत्र हैं। साथ ही, भीलगड़ा के जहाजपुर, कोटड़ी, मांडलगढ़, चित्तौड़गढ़ के मेनाल और बेगू में भी इसका एक अन्य रूप प्रचलन में हैं। इसके पूर्व में राजस्थानी ब्रज, उत्तर में मेवाती, उत्तर पश्चिम में तोरावाटी, पश्चिम में जयपुरी, दक्षिण पश्चिम में किशन गढ़ी और हाड़ोती दक्षिण में मालवी, दक्षिण पूर्व में बूँदेली और सहरी का भाषायी क्षेत्र है। विश्व की प्रमुख भाषाओं की पुस्तक एथनॉलोग(Ethnologue) में वर्णित सूची में मीणा[1] भाषा (myi) कोड के साथ 1971 की जनसंख्या के अनुसार इसके बोलने वालों की संख्या 900000, 1991 में 1900000 दर्शायी है और 2001 में 3800000 और 2011 में 5200000 मानी गयी है। 
13.1     मीणा भाषा का भाषायी क्षेत्र
मीणा भाषा प्राचीन काल से अपनी भाषिक विशिष्टताओं को धारण किये हुये हैं किंतु दुर्भाग्य से किसी भी भाषाविद या शोधार्थी ने इसकी विशिष्टताओं पर ध्यान नहीं दिया। कारण जो भी रहें हो, किंतु, विश्व की भाषाओं में मीणा भाषा का नामोल्लेख भी मिलता है। मीणा भाषा पर व्यापक शोधकार्य की जरूरत है जिससे इसके स्वरूप पर गहनता से प्रकाश डाला जा सके। सर्वे के दौरान क्षेत्रीय स्तर भेद भी परिलक्षित हुये है जिनमें झालावाड़ क्षेत्र की मीणा भाषा, सवाई माधोपुर क्षेत्र की मीणा भाषा, दौसा अलवर क्षेत्र की मीणा भाषा रूप प्रमुख रूप से मिलते हैं। इस आधार पर इसको दो भागों में बॉंटा जा सकता है. उत्तरी मीणा भाषा और दक्षिणी मीणा भाषा जिनमें वाचिक स्तर पर क्षेत्रीय भेद मिलते हैं ।
मीणा भाषा राजस्थान की प्रमुख आदिवासी मीणा/मीणा समुदाय द्वारा भाषा जाने वाली प्रमुख भाषा है। मीणा समुदाय के अतिरिक्त अन्य समुदायों द्वारा भी इसे बोला जात है। मीणा भाषा के दो उपरूप मिलते हैं जिनमें उत्तरी मीणा भाषा और दक्षिणी मीणा भाषा प्रमुख है। मीणा भाषा को पूर्वधारणाओं के आधार पर हाड़ौती और ढूंढाड़ी बोलियों में शामिल किया गया था जो भाषा.तात्विक दृष्टिकोण से बिल्कुल गलत तथ्य है। तार्किक दृष्टि से भी यह तर्क संगत नहीं है कि राजस्थान के दक्षिणी छोर से लेकर उत्तरी छोर हजारों मील तक एक ही भाषा का प्रभाव क्षेत्र हो । सर्वेक्षण में प्राप्त सामग्री के आधार पर किये गये भाषिक विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि मीणा भाषा स्वतंत्र भाषिक रूप धारण करने वाली भाषा है। सर्वेक्षण की संप्राप्ति के आधार पर भविष्य में अनेक शोधकार्य प्रकाश में आ सकते हैं।
13.2     मीणा की भाषिक विशिष्टताएँ
13.2.1 ध्वनि स्तर
1)      मीणा भाषा में स्वरों का उच्चारण अव्यवस्थित-सा है। कई स्थलों पर दीर्घ आ (a:) का उच्चारण अ (a) की तरह, ‘’, ‘का उच्चारण ऄ (à) की तरह और ’ (϶) का उच्चारण ’ (o) की तरह उच्चारित किया जाता है।
2)      अधिकांशतः स्वरों के स्वीकरण की प्रक्रिया यत्र.तत्र.सर्वत्र दिखायी पड़ती है।
3)      वहीं व्यंजनों के उच्चारण में का उच्चारण ’, कुछ स्थलों में ’ (ch) का उच्चारण साधारणतः ’ (s), और
4)      व्यंजनों के उच्चारण में ’ (s) का उच्चारण है ’ (h),  कुछ स्थलों में ’ (ch) का उच्चारण साधारणतया ’ (s) और
5)      अधिकांश सर्वेक्षण स्थलों पर तालव्य ’ ( ʃ ),  मूर्धन्य ’ (Š) के स्थान पर दंत्य ’ (s) का उच्चारण ही मिलता है। को कहीं (w), (v) लिपिवद्ध किया गया है किंतु यह सर्वत्र ’ (b) बन जाती है। जैसे
वदन (wadan) > बदन (badan)                =          चेहरा (chehara:)            Face
विचार (wicha:r) > बिचार (bicha:r)         =          सोचना (sochana)           Thought
च (c), छ (ch) का उच्चारण कहीं.कहीं स (s) किया जाता है।
चक्की (Floor Machine) >         सक्की (sakki:) 
छाछ (cha:ch)                  >         सास (sas)
6)      राजस्थानी में यही प्रवृत्ति लक्षित होती है। सर्वेक्षण में पाया गया कि मीणा भाषा में ध्वनि स्व या दीर्घ अ, , , ऐ और औ के पहले यह ध्वनि (w) के नजदीक रहती है तथा स्व या दीर्घ इ या ए से पूर्व यह (v) के कर करीब लगती है। जब तक (w) और (v) व्यंजन विशुद्ध ओष्ठ्य या दंतोष्ठ्य ध्वनि है, तब तक उसके उच्चारण पर उसके पश्चात् आने वाले स्वर से प्रभावित होती है।
7)      ध्वनि ऊपर के दाँतों को निचले होठ  पर दबाने से उत्पन्न होती है यह एक दंतोष्ठ्य ध्वनि है। व (w) विशुद्ध ओष्ठ्य ध्वनि मानी जाती है जो दाँतों को ओठ पद दबा कर नहीं बल्कि दोनों ओठों के बीच से श्वास के निकलने से होती है।
8)      साथ ही, इसमें मूर्धन्य ध्वनियों की बहुलता पायी जाती है। (L) तथा (ɳ) यहाँ खूब प्रचलित है। सर्वेक्षण के दौरान अधिकांश संकलित सामग्री में (L) तथा ’ (n) ध्वनि का मारवाड़ी मूर्धन्यीकरण स्वरूप ही पाया गया किंतु शब्दारंभ (initially position) में इन ध्वनियों का मूर्धन्यीकरण नहीं मिलता है, ऐसी स्थिति में ये हिंदी की ध्वनियों की भाँति ही उच्चरित होती हैं।
9)      मीणा भाषा में ’ (d) ड़ (D), ’ (dh), ढ (dh) ध्वनियों में ’ (D) और ’ (ʤ) की बहुलता और प्रधानता मिलती है।
13.2.2 शब्द स्तर
1)      शब्दांत में ‘.यो’ /ड़/ के प्रयोग की प्रवृत्ति मिलती है; यथा. गुवाळयो, ग्वाल, गदैड़ो = गधा, कुतरो = कुत्ता आदि।
2)      खोंरमीणा भाषा का अपना शब्द है जो किस तरफके अर्थ में प्रयुक्त होता है।
3)      म्होंरमीणा भाषा का अपना शब्द है जो उस तरफके अर्थ में प्रयुक्त होता है।
4)      चणकटभी मीणा भाषा का अपना शब्द है जो थप्पड़के अर्थ में प्रयुक्त होता है।
5)      भैणमीणा भाषा का अपना शब्द है जो बहिनके रूप में प्रयुक्त होता है।
6)      मोंफूकीमीणा भाषा का अपना शब्द है जो चोरीके रूप में प्रयुक्त होता है।
7)      उझेळमीणा भाषा का अपना शब्द है। राजस्थानी की अन्य बोलियों में इसका यह रूप नहीं मिलता है।
8)      उजूदमीणा भाषा का अपना शब्द है जो मौजूद के विलोमके रूप में प्रयुक्त होता है।
9)      उचंदमीणा भाषा का अपना शब्द है जो उधारके रूप में प्रयुक्त होता है।
10)  उघाड़ीछातीमीणा भाषा का अपना शब्द है जोहिम्मत (संज्ञा) साहसी, वीर (वि.), वीरता पूर्वक (क्रि.             
वि.)के रूप में प्रयुक्त होता है।
11)  ऊडंडमीणा भाषा का अपना शब्द है जो घोड़ाके रूप में प्रयुक्त होता है।
12)  हुदिळमीणा भाषा का अपना शब्द है जो व्यभिचारिणीके रूप में प्रयुक्त होता है।
13)  बोगाळीमीणा भाषा का अपना शब्द है जो जुगालीके रूप में प्रयुक्त होता है।
14)  छैलोमीणा भाषा का अपना शब्द है जो नखरेबाजके रूप में प्रयुक्त होता है।
15)  ताजणमीणा भाषा का अपना शब्द है जो घोड़ीके रूप में प्रयुक्त होता है।
16)  नबळाईमीणा भाषा का अपना शब्द है जो निर्बलताके रूप में प्रयुक्त होता है।
17)  दाळदमीणा भाषा का अपना शब्द है जो निर्धनताके रूप में प्रयुक्त होता है।
18)  गाअटोमीणा भाषा का अपना शब्द है जो खलिहान में पशुओं के पैरों अनाज को भूसे से  अलग करनाके रूप में प्रयुक्त होता है।
19)  मीणा भाषा में आघात (stress) की व्यवस्था भी दिखायी पड़ती है। सर्वेक्षण में रूसी भाषा की तरह शब्दाघात की व्यवस्था देखने को मिली किंतु उसके लेखन के लिए कोई लिपि चिह्न नहीं मिलता। अतः आघात को ( ) के चिह्न से अंकित किया है।
13.2.3 संरचना स्तर
1)      मीणा भाषा में दो लिंग मिलते हैं . पुल्लिंग तथा स्त्रीलिंग। शब्दों की ओकारांतता पुल्लिंग की द्योतक है तथा ईकारांतता स्त्रीलिंग की । आकारांत दोनों ही लिंगों में पायी जाती है।
2)      प्रश्नवाचक (अप्राणीवाचक) सर्वनाम के लिए काँईतथा (प्राणीवाचक) के लिए कुणका प्रयोग मिलता है।
3)      मीणा भाषा में सहायक क्रिया या Ö छ् (वर्तमान तथा भूतकाल) तथा Ö ग (भविष्यकाल) की द्योतक हैं।
4)      मीणा भाषा में पुरुषवाचक सर्वनामों में उत्तम पुरुष और मध्यम पुरुष में हॅूं/मऔर तू/थमरूप भी सुनाई पड़ते हैं।
5)      साथ ही, मीणा भाषा में म्हूं, तू, थू एकवचनीय रूप और म्हाँ, थाँ बहुवचन के रूप मिलते हैं।
6)      मीणा भाषा के भविष्यकालिक रूप जोड़ने से बनते हाड़ोती में सीसहायक क्रिया रूप से निष्पन्न होते हैं।
7)      मीणा भाषा में स्थानवाचक क्रिया विशेषण म्हाँ, ज्यां, खां आदि हैं और स्थान संकेत वाचक क्रिया विशेषण अत,अड़ी (इधर), कत,कड़ी (किधर) आदि है हाड़ोती में इनके स्थान पर उठे, कठै आदि प्रयुक्त होते हैं।
8)      मीणा भाषा के कुछ संज्ञा शब्दों के साथ विभत्तिफ़.योजना द्वारा भी अधिकरण कारक की अभिव्यक्ति होती है; यथा.
जयपुरी                                       मीणा भाषा                                              हिंदी
डागळे होर निकल जाज्यो।              डागळा म होर नकळ जाज्यो।           = छत पर होकर निकल जाना।
वो कुग्गेलाँ चालवा लाग्यो।             बा कुग्गेलाँ चालब लाग गियो।         = वह कुमार्ग पर चलने लगा।
9)      मीणा भाषा में संकेतवाचक एक वचन सर्वनाम के रूप लिंग से प्रभावित है,हिंदी में नहीं
बा         (वह, पुं.),          बा         (वह, स्त्री.)
या         (यह, पुं.),           यो         (स्त्री.)
10)  सभी संज्ञा.शब्दों के हिंदी की भांति ही आलोच्य भाषा में भी तीन प्रकार के रूप.मूल विकारी एवम् संबोधन. दो वचन . एक वचन एवम् बहुवचन. में प्राप्त होते हैं।
11)  संज्ञा शब्दों में लिंग एक आंतरिक कोट है जबकि सर्वनाम, विशेषण तथा क्रिया.रूप.रचना में यह एक व्याकरणिक कोटि हैं।
12)  पुल्लिंग संज्ञाएँ रूप.रचना की दृष्टि से दो वर्गों. ओकारांत व अन्य में विभाजित है। समस्त स्त्रीलिंग संज्ञाओं के केवल एक ही प्रकार के रूप उपलब्ध होते हैं, जबकि हिंदी स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दावली रूप.रचना की दृष्टि से दो वर्गों . ईकारांत, इकारांत या याकारांत एवं अन्य में विभक्त है। हिंदी के समान ही आलोच्य भाषा में विकारी कर्ता.रूपों के साथ नै . नपरसर्ग जुड़ता है।
13)  सर्वनामों में व्याकरणिक कोटियाँ दो . वचन तथा कारक है। सर्वनाम रूपों में वचन के अनुसार पृथक.पृथक रूप केवल पुरुषवाचक, संकेतवाचक, संबंधवाचक सर्वनामों में ही मिलते हैं, अनिश्चयवाचक, निजवाचक तथा प्रश्नवाचक सर्वनाम रूपों में नहीं।
14)  मीणा भाषा में ह-कार’ (h-delition) की प्रवृत्ति दिखायी पड़ती है जैसे पहला~पहिलो > पइलो (first) कहना~कहणो > कॅणो / कॅवणो (to say) साथ ही, महाप्राणत्व वाचिक थामौखिक रूप में नहीं मिलता है जैसे.
हिंदी                                                      मीणा                             अंग्रेजी
दूध                                                         दूद (du:d)           (Milk)
साथ                                                        सात (sa:t)            (together)
सीख                                                       सीक (si:k)           (to advice)
सीखा                                                      सीकमो (si:kamo)     (to learn)
पढ़ना                                                      पडना (pedena)       (to teach)
नभ                                                         नव (naw)                    (sky )
मीणा भाषा प्राचीन काल से अपनी भाषिक विशिष्टताओं को धारण किये हुये हैं किंतु दुर्भाग्य से किसी भी भाषाविद या शोधार्थी ने इसकी विशिष्टताओं पर ध्यान नहीं दिया। कारण जो भी रहें हो, किंतु, विश्व की भाषाओं में मीणा भाषा का नामोल्लेख भी मिलता है। मीणा भाषा पर व्यापक शोधकार्य की जरूरत है जिससे इसके स्वरूप पर गहनता से प्रकाश डाला जा सके। राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय, अजमेर के प्रोफेसर राम लखन मीणा द्वारा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नयी दिल्ली में प्रस्तुत शोधकार्य ‘राजस्थान के बोली-भूगोल सर्वेक्षण’ के आधार पर भविष्य में अनेक शोधकार्य प्रकाश में आ सकते हैं।


[1] Mina Language : It is spoken in major part of Rajasthan and some part of Madhya Pradesh and Rest of India