मूकनायक मीडिया
: डॉ अंबेडकर-मिशन की बुलंद आवाज का दस्तावेज
मूकनायक : युवा मन
की आवाज़
बाबासाहब डॉ अंबेडकर एक पत्रकार के रूप
में बहिष्कृत समाज की मुक्ति के साथ नए राष्ट्र के निर्माण लिए कार्य करते रहे, जिसकी
परिकल्पना और शुरुआत ‘मूकनायक’ के
प्रकाशन द्वारा दलितों की सदियों की खामोशी को तोड़ने के लिए की।
वर्ष 2020 ‘मूकनायक’ समाचार-पत्र का
शताब्दी वर्ष है। अब से ठीक सौ वर्ष पहले 31 जनवरी,
1920 को ‘मूकनायक’ का पहला अंक प्रकाशित हुआ था। डॉ अंबेडकर के बहुआयामी व्यक्तित्व को पत्रकार
के रूप में याद करते हुए ‘मूकनायक’ के
प्रकाशन की 100 वीं वर्षगांठ के मौके पर हम इसका डिजीटल संस्करण
आप सबके समक्ष ला रहे हैं ।
बाबासाहब डॉ अंबेडकर की पत्रकारिता का
काल 1920 से 1956 तक विस्तारित है जिसमें
उन्होंने ‘मूकनायक-1920’, ‘बहिष्कृत
भारत-1927’, ‘जनता- 1930’, तथा प्रबुद्ध भारत-1956 में
प्रकाशित किए। अमेरिका में अध्ययन कर 21 अगस्त 1917 को डॉ अंबेडकर के बम्बई वापस आने के बाद उनका यह प्रथम सामाजिक
प्रयास था, जिसका उद्देश्य समाज के शोषितों, उत्पीड़ितों और वंचितों को जगाना था, विशेषकर
बहिष्कृत अछूतों को। हर वक्त उनकी चिंता
का विषय आदिवासियों की पीड़ा और अस्पृश्यों का अपमान और
इससे मुक्ति बनी रही।
इस डिजिटल प्लेटफार्म पर हम डॉ अंबेडकर
के पत्रकार व्यक्तित्व पर विशेष श्रृंखला के तहत उन लेखों का प्रकाशन करेंगे, जो
उनकी पत्रकारिता पर केंद्रित हैं। साथ ही, जो उनके पत्रकारिता के
मानदंडों, मूल्यों और उसकी वैचारिकी से रू-ब-रू कराएंगे।
इसकी शुरुआत हम तत्काल कर रहे हैं। मूकनायक (पाक्षिक) डॉ बाबासाहेब अंबेडकर ने समाज के दर्द और विद्रोह को व्यक्त करने के लिए
शुरू किया गया था। इस के संपादक पांडुरंग नंदराम भटकर, एक शिक्षित
महार युवा थे। क्योंकि अंबेडकर कॉलेज में प्रोफेसर के रूप में काम कर रहे थे,
इसलिए वे संपादक के रूप में खुलकर काम नहीं कर सके। ‘मनोगत’ शीर्षक वाले पहले अंक में पहला
लेख खुद डॉ अंबेडकर ने लिखा था। छत्रपति राजर्षि शाहू महाराज ने मूक नायक को 2,500
रुपये की आर्थिक मदद दी थी।
बाबासाहेब अंबेडकर ने कहा था कि ‘किसी
भी आंदोलन के सफल होने के लिए, उस आंदोलन का अखबार बनना
होगा। एक आंदोलन बिना अखबार टूटे हुए पंखों वाली पार्टी की तरह होता है।’ ‘मूकनायक’ ने उस अछूतों के बीच जागरूकता पैदा की और
उन्हें उनके अधिकारों के बारे में जागरूक किया। उसका मुख्य उद्देश्य दलितों,
गरीबों और शोषित लोगों की शिकायतों को सरकार और अन्य लोगों तक पहुँचाना था।
इसके लिए, बाबासाहब अंबेडकर ने अपने लेखों में, बहिष्कृत अछूत समुदाय
के साथ हो रहे अन्याय पर प्रकाश डाला और उस समुदाय के उत्थान के लिए तत्कालीन ब्रिटिश
सरकार को कुछ उपाय सुझाए।
बाबासाहब ने हमेशा महसूस किया कि
अछूतों को अपने उद्धार या विकास के लिए राजनीतिक-शक्ति और शैक्षिक-ज्ञान प्राप्त
करने की आवश्यकता है। उस दौर में, मूकनायक का उद्देश्य जागरूकता पैदा
करने के साथ-साथ अछूतों का सामाजिक और धार्मिक क्षेत्रों
के साथ-साथ राजनीतिक क्षेत्र में भी मजबूत स्थान स्थापित करना था और अब भी यही
रहेगा। 'मूकनायक' पत्र में विभिन्न विचार,
करंट अफेयर्स, चयनित पत्रों के अंश, बहुजन-कल्याण, समाचार, वैज्ञानिक-दृष्टिकोण
की पुनर्स्थापना, इत्यादि शामिल थे। किन्तु. आर्थिक-संकट की
वजह से मूकनायक अप्रैल 1923 में बंद हो गया।
मीडिया और अख़बार के अतिरिक्त कोई और
जगह नहीं है जो हम बहुजनों के साथ हो रहे अन्याय-अत्याचार का समाधान सुझाए और साथ-ही-साथ
उनके भविष्य के उत्थान और उसके पथ के वास्तविक स्वरूप पर चर्चा करे। लेकिन इंडिया
में मीडिया और समाचार पत्रों के चरित्र को देखते हुए, यह
स्पष्ट है कि उनमें से अधिकांश जाति- विशेष के हित में हैं। न केवल वे अन्य
जातियों के हितों की परवाह नहीं करते हैं, बल्कि कभी-कभी
उन्हें नुकसान भी पहुँचाते हैं। ऐसे पत्रकारों के लिए हमारी चेतावनी है कि यदि
किसी एक जाति को नीचा दिखाया जाता है, तो उसके अपमान का
क्लिक दूसरी जाति में बैठे बिना नहीं होगा।
समाज एक नाव है, जिस
तरह आग के गोले से यात्री जानबूझकर दूसरों को चोट पहुँचाता है, या अपने विनाशकारी स्वभाव के कारण, अगर वह किसी एक
नाव में छेद करता है, तो उसे पहले या बाद में सभी नावों के
साथ जलसमाधि लेनी होगी। उसी तरह, एक प्रजाति को नुकसान
पहुँचाने से, इसमें कोई संदेह नहीं है कि अप्रत्यक्ष रूप से
नुकसान पहुँचाने वाली प्रजाति को भी नुकसान होगा। इसीलिए दूसरों को हानि पहुँचाकर
अपना भला करने की मूर्खता का गुण नहीं सीखना चाहिए।
बाबासाहब दो अंबेडकर के संरक्षण में
प्रकाशित मूकनायक के पहले अंक का पाठ इस प्रकार था - "हिंदू समाज एक मीनार है
और एक जाति एक मंजिल है। लेकिन याद रखने वाली बात यह है कि इस मीनार की कोई सीढ़ी
नहीं है और इसलिए एक मंजिल से दूसरी मंजिल तक जाने का कोई रास्ता नहीं है। जो जहाँ
पैदा होते हैं, उन्हें उसी मंजिल पर मरना होता है । निचली मंजिल का
व्यक्ति, चाहे वह कितना भी योग्य क्यों न हो, ऊपरी मंजिल पर और ऊपरी मंजिल पर मौजूद व्यक्ति तक उसकी पहुँच नहीं है,
चाहे वह कितना भी अयोग्य क्यों न हो, उसे
निचली मंजिल पर जाने का कोई भी उपाय नहीं है।
क्योंकि लोकतंत्र तभी बचेगा, जब
सच बचेगा! गोदी मीडिया के इस दौर में पत्रकारिता को राजनीति और कारपोरेट दबावों से
मुक्त रखने के लिए ‘मूकनायक-मीडिया’ के
साथ जुड़ने का प्रयास कीजिएगा, वेबसाइट-लिंक पर आपका एक-एक
क्लिक और सब्सक्राइब (subscribe) मिशन को समृद्ध से समृद्धतम
बनाएगा क्योंकि यह बाबासाहब के अधूरे-सपनों को मंजिल तक पहुँचाने का एक मात्र
रास्ता है । ‘मूकनायक : डॉ अंबेडकर की बुलंद आवाज’ का दस्तावेज बनेगा, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।
इस उद्देश्य की महती पूर्ति में हम सबका मिलजुल कर छोटा ही सही पर
महत्वपूर्ण कदम है। ‘मूकनायक-मीडिया’ विश्वविद्यालयों के
पूर्व प्रोफेसरों, वरिष्ठ पत्रकारों की बाबासाहब
के मिशन; दबे-कुचले वर्गों के उत्थान के अपने अभियान को आगे बढ़ाने
की अपनी कोशिश है क्योंकि जब मुख्यधारा का मीडिया देख-सुन ना सके, गोद में खेल रहा हो, लोभ-लालच में हो या भयातुर हो,
तब संपूर्ण सत्यता के लिए ‘मूकनायक’ आपका नायक बनेगा, आपकी आवाज बनेगा, और बहुजन-न्याय का टूटा-भटका सिलसिला फिर से शुरू
होगा। ताकि, आप लें सकें सही फ़ैसला क्योंकि महात्मा
बुद्ध ने कहा है "सत्य को सत्य के रूप में और असत्य को असत्य के रूप में जानो !
पत्रकारिता के मर्म और धर्म के इस
स्वरूप को लेकर हमारी सोच के रास्ते में सिर्फ जरूरी संसाधनों की अनुपलब्धता ही
बाधा हो सकती है। आप स्वेच्छा से नीचे दी गयी कोई भी धनराशि जो आप चुनना चाहें, उस
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सहयोग (Voluntary Contribution) होगा, जैसे-जैसे
हमारे संसाधन बढ़ेंगे, हम ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाने
की कोशिश करेंगे, और बिरसा- अंबेडकर-फूले के मिशन को कामयाबी की पराकाष्ठाओं
तक ले जाने में सफल होंगे।
बाबासाहब के सिपाहियों और भीम-सैनिकों एवं
पाठकों से हमारी बस इतनी-ही गुजारिश है कि हमें पढ़ें, सोशल-मीडिया
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सुझाव दें, हो सके तो अपने जज्बातों को लिखकर हम तक पहुँचावे, हम उसे भी छापेंगे। आपके लेख, सुझाव हमें गौरवान्वित
करेंगे और हमारा मार्गदर्शक भी। आपके सुझाव, सहयोग सादर
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जय बिरसा, जय भीम, जय फूले...
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