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Monday, 26 December 2016

डिजिटल इण्डिया और ई-लेनदेन के बुनियादी सरोकार (Digital India and Basics of I-payment) प्रोफ़ेसर राम लखन मीना, राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय, अजमेर



डिजिटल इण्डिया और ई-लेनदेन के बुनियादी सरोकार 
Digital India and Basics of I-payment
प्रोफ़ेसर राम लखन मीना, राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय, अजमेर
 ‘द गार्जियन’ की ताज़ा रिपोर्ट्स के अनुसार स्वीडन दुनिया का सबसे पहला कैशलेस लेनदेन वाला देश माना जाता है जिसमें 96 प्रतिशत तक नक़द भुगतान  किये जाते हैं जिन्हें 2020 तक 0.05 फ़ीसदी तक किये जाने का लक्ष्य है । इसके बाद बेल्जियम में 93, फ़्रांस में 92, कनाडा में 90, ब्रिटेन में 89, आस्ट्रेलिया में 86,  प्रतिशत तक नक़द भुगतान किये जाते हैं। उसके बाद क्रमश: नीदरलैंड 85, अमेरिका 80, जर्मनी 76 और दक्षिण कोरिया का 70 फ़ीसदी के साथ नंबर आता है उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार प्रधानमंत्री की नोटबंदी की घोषणा तक भारत में केवल 2 फ़ीसदी कैशलेस लेनदेन किया जाता रहा है ।  
सवाल है कि भारत जैसे बड़े देश में शत प्रतिशत कैशलेश लेनदेन कैसे संभव है ? जहाँ 640,867 गांव हैं। देश की 68.84 फीसदी आबादी गांवों में रहती है।  40 फ़ीसदी लोग गरीबी रेखा के से नीचे रहते हैं। गाँवों में 94 फीसदी से अधिक लोग कम्पूटर से अनभिज्ञ हैं, यहाँ तक कि राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता दर मात्र 11.4 फीसदी है। भारत 84.6 फ़ीसदी कृषि और कृषि-जनित व्यवसाय प्रधान देश है, इससे किसानों को कैसे मदद मिलेगी? विश्व में सबसे ज्यादा निरक्षर वयस्क भारत में हैं। यह संख्या दुनिया भर की निरक्षर आबादी का 37 प्रतिशत है। क्या वो डिजिटल इंडिया का मतलब भी समझते हैं? मोदी सरकार स्मार्टफोन चलाने और कैशलेस बनाने के दिन में सपने देख रही है। गांवों में रहने वालों की बात तो छोड़िए देश के महानगरों में एटीएम की लाइन में लगे 20-25 फीसदी लोग पैसे निकालने के लिए दूसरे की मदद ले रहे हैं। वे अक्सर कागज के टुकड़े पर पिन नंबर लिखकर रखे होते हैं। डिजिटल निरक्षरता के कारण ही भारत को हर साल करीब 27 खरब रुपए का नुकसान सहना पड़ता है इतना ही नहीं देश में 40 फीसदी से अधिक जनप्रतिनिधि अपने मोबाईल सेटों से एसएमएस तक नहीं कर सकते हैं, ऐसे में 'डिजिटल ट्रांजेक्शन" कितना सुरक्षित है समझा जा सकता है।   
सपने देखने का हक़ सभी को है, सपने देखने के हक़ को छीना भी नहीं जा सकता है और छीनना चाहिए भी नहीं वरना ये आम जनता के मौलिक अधिकारों का हनन होगा क्योंकि आम इंसान अपनी जिंदगी का तीन चौथाई हिस्सा सपने देखकर ही पूरा करता है फ़िर भी, प्रधानमंत्री की मंशाओं के अनुरूप देश की समृद्ध अर्थव्यवस्था के लिए कैशलेस लेनदेन (अंतरण) के विभिन्न उपायों को अमल में लाने की आवश्यकता है और प्रत्येक जिले, तालुके एवं गाँव-ढाणियों  में डिजिटल आर्मी का निर्माण करते हुए इस दिशा में ई-क्रांति की सृजना करनी होगी ताकि देश सही मायनों में कैशलेस व डिजिटल इंडिया बन सके। लेकिन इसमें सबसे बड़ी बाधा है कि नेशनल ऑप्टिक फ़ाइबर नेटवर्क प्रोग्राम की कछुआ चाल जो अभी भी पाँच-सात साल पीछे चल रही है। सरकार को ये समझना होगा कि जब आप गांव-गांव तार बिछाने जाएंगे तो आप उन लोगों को ये काम नहीं सौंप सकते जो पिछले 50 साल से कुछ और बिछा रहे हैं। सरकार को वो लोग लगाने होंगे जो ऑप्टिक फ़ाइबर नेटवर्क की तासीर समझते हैं।
नीति आयोग की कार्ययोजना के अनुसार एंड्राईड फोन को माईक्रोएटीएम की भांति उपयोग करने के लिए एक विशिष्ट डिवाईस विकसित किया जा रहा है जो बायोमेट्रिक पहचान का काम करेगा और यह जल्द ही देशभर में आम उपयोग में आने लगेगा, किंतु यह अभी तक बिलकुल आरंभिक दौर में ही है । इसके माध्यम से बैंक के क्रेडिट और डेबिट कार्ड्स, यूएसएसडी मोबाईल बैंकिंग, आधार के माध्यम से भुगतान, यूपीआई के तहत बैंकएप्पस का प्रयोग, ई-वालेट्स तथा पोस (POS) के माध्यम से कैशलेस अंतरण हो सकेगा। डिजिटल इंडिया के तहत सरकारी विभागों को देश की जनता से जोड़ना है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना भी है कि बिना कागज के इस्तेमाल के सरकारी सेवाएं इलेक्ट्रॉनिक रूप से जनता तक पहुंच सकें।
इस योजना के उद्देश्यों में  ग्रामीण इलाकों को हाई स्पीड इंटरनेट के माध्यम से जोड़ने के साथ-साथ डिजिटल आधारभूत ढाँचे का निर्माण करना, इलेक्ट्रॉनिक रूप से सेवाओं को जनता तक पहुंचाना और डिजिटल साक्षरता प्रमुख हैं। योजना को 2019 तक कार्यान्वयित करने का लक्ष्य है। इसमें एक टू-वे प्लेटफॉर्म का निर्माण किया जाएगा जहाँ सेवा प्रदाता और उपभोक्ता को लाभ होगा। किंतु, इसमें लीगल फ्रेमवर्क, गोपनीयता का अभाव, डाटा सुरक्षा नियमों की कमी, नागरिक स्वायत्तता हनन, तथा भारतीय ई-सर्विलांस के लिए सटीक और कारगर निगरानी की कमी तथा भारतीय साइबर असुरक्षा जैसी कई महत्वपूर्ण कमियाँ भी हैं। डिजिटल इंडिया को कार्यान्वयित करने से पहले इन सभी कमियों को दूर करना होगा।
'भारत ब्रॉडबैंड नेटवर्क लिमिटेड' नेशनल ऑप्टिकल फाइबल नेटवर्क जैसी परियोजना की कार्यान्विति में तेजी लानी होगी क्योंकि यही डिजिटल इंडिया कार्यक्रम की देखरेख करेगा । बीबीएऩएल ने यूनाइटेड टेलीकॉम लिमिटेड को 2,50,000 गाँवों को एफटीटीएच ब्रॉडबैंड आधारित तथा जीपीओएन के द्वारा जोड़ने का आदेश दिया है। यदि सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो यह 2017 के अंत तक (अपेक्षित) पूर्ण होने वाली डिजिटल इंडिया परियोजना को सभी आधारभूत सुविधाएं मुहैया कराएगी। यह भी माना जा रहा है कि ई-कॉमर्स डिजिटल इंडिया प्रोजेक्ट को सुगम बनाने में मदद करेगा। जबकि, इसे कार्यान्वित करने में कई चुनौतियाँ और कानूनी बाधाएं भी आ सकती हैं। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि देश में डिजिटल इंडिया सफल तबतक नहीं हो सकता जबतक कि आवश्यक बीसीबी ई-गवर्नेंस को लागू न किया जाए तथा एकमात्र राष्ट्रीय ई-शासन योजना (National e-Governance Plan) का अपूर्ण क्रियान्वयन भी इस योजना को प्रभावित कर सकता है।
डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का शुभारंभ 01 जुलाई, 2015 को प्रधानमंत्री द्वारा लालकिले के भाषण में किया गया।  यह प्रधानमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट है।  इसके लिए सरकार ने 1,13,000 करोड़ का बजट रखा था । डिजिटल इंडिया योजना के जरिये 2017 तक हर गांव और शहर को इंटरनेट से जोड़ने का प्लान है, ताकि लोग कागजी काम पर आश्रित रहने के बजाय अपने ज्यादातर काम ऑनलाइन करवा सकें। पर, अब तक भारत कितना डिजिटल हुआ है सबको पता है। वस्तुत: यह योजना अपने उद्देश्यों से पूर्णतया भटक चुकी है क्योंकि विभागों या न्यायालयों में समेकित एकीकृत सेवाएं, ऑनलाइन और मोबाइल प्लेटफार्मों के माध्यम से वास्तविक समय पर उपलब्ध सेवाएँ, नागरिकों के सभी अधिकार पोर्टेबल और क्लाउड पर उपलब्ध, डिजिटल सेवाओं में परिवर्तन द्वारा व्यापार कर की सुविधा में सुधार, वित्तीय लेनदेन को इलेक्ट्रॉनिक और नगद रहित बनाना, निर्णय समर्थन प्रणाली और विकास के लिए भू-स्थानिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) का इस्तेमाल जैसे इसके लक्ष्य जमीनी स्तर पर कहीं भी दिखलायी नहीं पड़ते हैं
वहीं, भारत के साइबर सुरक्षा चलन ने भारतीय साइबर स्पेस की कमियों को बख़ूबी उजागर किया है।  यहाँ तक कि अबतक राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा योजना 2013 अभी तक क्रियान्वित नहीं हो पायी है। इन सभी वर्तमान परिस्थियों में महत्वपूर्ण आधारभूत सुरक्षा का प्रबंधन करना भारत सरकार के लिए कठिन कार्य होगा तथा इस प्रोजेक्ट में उचित ई-कचरा प्रबंधन के प्रावधान की भी कमी है। ऑनलाइन या साइबर फ्रॉड एक अलग तरह का अपराध होता है इसलिए इससे निपटने के लिए अलग अदालत बनाई गई है लेकिन बिना जज के अदालत का कोई मतलब नहीं और जब जज ही नियुक्त नहीं हो तो न्याय की कामना करना ख्याली पुलावों जैसा ही है, एसी व्यवस्था का कोई भी मतलब नहीं रहेगा। सटीक और कारगर व्यवस्थाओं के नहीं होने के कारण अभी तक देश के किसी भी राज्य में दर्ज साइबर अपराधों के मामलों एवं न्यायिक अधिकारी के फैसले को दिल्ली के साइबर अपीलेट ट्रिब्यूनल में चुनौती दी जाती  है यानी अगर तमिलनाडू, पश्चिम बंगाल, कश्मीर या राजस्थान में भी आपके साथ कोई धोखाधड़ी हो तो न्यायिक अधिकारी के फैसले को दिल्ली में ही चुनौती दें सकते हैं । आमतौर पर अगर आप सीधे हाइकोर्ट में भी जाते हैं तो कोर्ट मामला साइबर अपीलेट ट्रिब्यूनल में भेज देते हैं ।
देश में आजकल सरकार खूब डिजिटल इंडिया और ऑनलाइन पैसे के लेनदेन के लिए लोगों को शिफ़्ट करने को मजबूर तो कर रही है लेकिन अगर ऑनलाइन दुनिया में किसी के साथ कोई धोखाधड़ी हो जाए तो उसके लिए न्यायालय की क्या व्यवस्था है, उससे मन सिहर जाता है! और कई बुनियादी सवाल खड़े करता है  एक, प्रधानमंत्री की नाक के नीचे दिल्ली के कनॉट प्लेस में साइबर अपीलेट ट्रिब्यूनल में 30 जून 2011 के बाद किसी जज की नियुक्ति नहीं हुई है और 2011 के बाद कोई फैसला भी इस अदालत से नहीं आया है।  दूसरा, लाख कोशिशों के वाबजूद सामान्य न्याय के लिए तो आम आदमी सबूत नहीं जुटा पाता फ़िर डिजिटल सबूतों के लिए तो उसका क्या हश्र होने वाला है? मोदी सरकार के डिजिटल इंडिया और कैशलेस सोसाइटी के दावे की यही हक़ीक़त है। तीसरा, लोगों को इस तरफ धकेला तो जा रहा है लेकिन न्याय और सुरक्षा के इंतज़ाम कौन और कब करेंगे यक्ष प्रश्न हैं!  
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब तक प्रोत्साहनों और घोषणाओं का तो अम्बार लगा दिया है, किंतु अब उन सभी को पूरा करने की चुनौती का सामना भी करना पड़ेगा जिसमें दस क्षेत्रों; ब्रॉडबैंड हाइवे, सबके पास फोन की उपलब्धता, पब्लिक इंटरनेट एक्सेस प्रोग्राम, ई-गवर्नेंस, ई-क्रांति, ई-लेनदेन, इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन, आईटी फ़ॉर जॉब्स के ज़रिए नौकरियां पैदा करने के लिए हर ब्लॉक स्तर पर रूरल बीपीओ खोलने होंगे तथा अर्ली हार्वेस्ट प्रोग्राम पर ध्यान देना लाजमी होगा। गांव में डिजिटल तकनीक को लेकर अब तक जो काम हुआ है, उसके आधार पर कह सकते हैं कि अगर सब-कुछ सटीक और ठीक उस तरह हो जाए जैसा कागज़ों पर दिखता है तब भी भारतीय परिस्थितियों में इन लक्ष्यों को पूरा होने में कम से कम दस साल लगेंगे। निजता सुरक्षा, डाटा सुरक्षा, साइबर कानून, टेलीग्राफ, ई-शासन तथा ई-कॉमर्स आदि के क्षेत्र में भारत का बहुत ही कमजोर नियंत्रण है। अधिकांश कानूनी विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि सटीक, कारगर और पुख्ता साइबर सुरक्षा के बिना ई-प्रशासन, ई-लेनदेन और डिजिटल इंडिया व्यर्थ है।
 

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