भारत में नोटबंदी, डिजिटल क्रांति और साइबर सुरक्षा : प्रोफ़ेसर राम लखन मीना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नोटेबंदी की अचानक घोषणा द्वारा देश में प्रचलित 500 और 1000 रुपये के नोटों को खत्म करने का ऐलान किया गया, जिसका उद्देश्य केवल काले धन पर नियंत्रण ही नहीं बल्कि जाली नोटों से छुटकारा पाना भी था । किंतु, घोषणा के एक महीने बाद भी देश के मेहनकश किसानों, मजदूरों, आम जन को अभी तक रहत नहीं मिली है । इस घटनाक्रम ने एक नयी बहस की भी शुरूआत कर दी और देश में डिजिटल क्रांति और प्लास्टिक मनी के दौर में प्रवेश कर रहा है, पर क्या देश के अंदरूनी हालात इसकी इजाजत देते हैं ? भारत जैसे विकासशील देश में जिसकी सत्तर फीसद जनसंख्या दूर-दराज देश के गांवों और ढाणियों में रहती हैं, 80 फीसदी से भी अधिक जनसंख्या डिजिटली निरक्षर है उस स्तिथि में क्या यह सब संभव हो पायेगा ?
इंटरनेट ने
अगर हमारी जिंदगी आसान की है तो दूसरी तरफ कई मुश्किलें भी पैदा की है। चंद
सेकेंडों का क्लिक हमें हजार सूचनाएं को आसानी से मुहैया कराता है। लेकिन साइबर अपराध इंटरनेट
की दुनिया पर काला धब्बा बनकर मंडरा रहे है। जबसे इंटरनेट का जन्म हुआ तब से यह
मुश्किल नासूर का शक्ल अख्तियार कर चुका है। साइबर अपराधों से लगभग पूरी दुनिया
परेशान है और इसके बचाव के तरीके भी खोजे जा रहे हैं । लेकिन इन अपराधों पर अंकुश
लगने की बजाए यह तेजी से बढ़ते चले जा रहे है। बहुत से साइबर अपराध, कंप्यूटर का प्रयोग करके किये जाते हैं पर उनका लक्षय कंप्यूटर या सर्वर
नहीं होता है। इस तरह के अपराधों में साइबर
आतंकवाद; साइबर गतिविधियों के द्वारा धार्मिक, राजनैतिक
उन्माद पैदा करना, आर्थिक
अपराध; क्रेडिट कार्ड से गलत
तरह से पैसा निकाल लेना या ऑनलाइन व्यापार या बैकिंग में धोखाधडी करना, फिशिंग;
अक्सर कुछ संदिग्ध ईमेल मिलते है जिससे प्रतीत होता है कि वे किसी
बैंक में या किसी अन्य संस्था की बेब साइट से हैं। यह आपके बैंक के खाते या अन्य
व्यक्तिगत सूचना पूछने का प्रयत्न करते हैं। ये सारी ई-मेल फर्जी है और यह आपकी
व्यक्तिगत सूचना को जानकर कुछ गड़बड़ी पैदा कर फिशिंग करते हैं, साइबर छल; अक्सर ई-मेल, एसएमएस मिलते लालच देकर धोखाधडी की जाती है, साइबर जासूसी इसे एडवेयर
या स्पाईवेयर जाता है जिसमें आपकी व्यक्तिगत सूचना एकत्र कर आपके कंप्यूटर या
मोबाईल को धीमा कर देते हैं, पहचान
की चोरी; या इलेक्ट्रानिक हस्ताक्षर को हैक करना, स्पैम; अनचाही ई-मेल, स्पिम; अन्तरजाल के बातों
के दौरान अनचाही बातें, साइबर स्टॉकिंग; अन्तरजाल
पर पीछा करना या तंग करना, अश्लीलता
: अश्लील ईमेल,
अश्लील चित्र, चित्रों को बदल कर किसी अन्य का
चित्र लगा देना इत्यादि शामिल हैं ।
भारत में पिछले
10 सालों में (2005-14)
साइबर अपराध के मामलों में 19 गुना और विगत
तीन वर्षों में 350 फीसदी से भी अधिक बढ़ोतरी हुई है। इंटरनेट पर ‘दुर्भावनापूर्ण गतिविधियों’ के मामले में भारत का
अमेरिका और चीन के बाद तीसरा स्थान है। वहीं, दुर्भावनापूर्ण
कोड के निर्माण में भारत का स्थान दूसरा और वेब हमले और नेटवर्क हमले के मामले में
क्रमश: चौथा और आठवां स्थान है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े कहते
हैं कि साइबर अपराधियों की गिरफ्तारी में 9 गुना बढ़ोतरी हुई
है। साल 2005 में जहां 569 साइबर
अपराधी पकड़े गए थे, वहीं 2014 में
इनकी संख्या 5,752 हो गई। वहीं, इस
दौरान भारत में इंटरनेट प्रयोक्ताओं का आंकड़ा बढ़कर 40 करोड़
हो गया, जिसके दिसंबर 2016 तक 58.2
करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। 2014 में कुल 9,622
साइबर मामले दर्ज किए गए जो कि साल 2013 से 69
फीसदी अधिक है। इंडियास्पेंड की रिपोर्ट के मुताबिक पेरिस की गैर
सरकारी संस्था द्वारा जारी साल 2015 की प्रेस स्वतंत्रता
सूचकांक में भारत का स्थान 136वां है, तुर्की
का 149वां और रूस का 152वां है। भारत में साइबर
अपराधों में मुख्यत: अश्लीलता, धोखाधड़ी और यौन शोषण शामिल है। 2014 में वित्तीय
धोखाधड़ी से जुड़े कुल 1,736 साइबर मामले दर्ज किए गए।
महाराष्ट्र में सबसे अधिक साइबर मामले साल 2014 में 1,879
दर्ज किए गए, जबकि इससे पिछले साल कुल 907
मामले दर्ज किए गए थे। उसके बाद उत्तर प्रदेश में (1,737) कर्नाटक (1,020), तेलंगाना (703) और राजस्थान (697) का नंबर है। आईटी अधिनियम और भारतीय दंड संहिता के तहत दर्ज मामलों की
संख्या लगातार बढ़ रही है।
आईटी अधिनियम के तहत दर्ज मामलों 2011 से 2015 के लिए 200
से अधिक% की वृद्धि हुई है । 2013 और 2014 के बीच आईटी एक्ट के तहत साइबर अपराधों
की संख्या में लगभग 70% वृद्धि हुई थी। भारतीय दंड संहिता के तहत दर्ज मामलों 2011
और 2015 के बीच की अवधि के दौरान अधिक से अधिक 7 गुना की वृद्धि हुई है। इसी तरह
की प्रवृत्ति गिरफ्तार किए गए लोगों की संख्या में बढ़ोतरी दर्ज हुई है। सरकार ने
भी इस तरह के अपराधों की संख्या में प्रौद्योगिकी,
स्मार्ट फोन और जटिल अनुप्रयोगों, और
व्यवसायों के लिए साइबर स्पेस के उपयोग में वृद्धि सहित उपकरणों की शुरूआत इस तरह
हुई वृद्धि को स्वीकार किया है । 2011-2015 की अवधि में साइबर अपराध की
घटनाओं के साथ राज्यों की सूची में कई
आश्चर्यजनक बदलाव आया है। महाराष्ट्र में 5 साल में अधिकतम
5900 मामलों दर्ज हुए हैं वहीँ ऐसे 5000
मामलों के साथ उत्तर प्रदेश के दूसरे स्थान पर है। कर्नाटक में 3500 से अधिक मामलों के साथ तीसरे नंबर पर हैं। नीचे आबादी और इंटरनेट पैठ के
साथ अपेक्षाकृत 10 छोटे राज्यों कर रहे हैं।
2016 के पहले तीन
महीनों में 8,000 से ज्यादा वेबसाइटों को हैक किया गया तथा 13,851
स्पैम उल्लंघन की जानकारी मिली है। हाल ही में राज्यसभा में एक
प्रश्न के जवाब में यह जानकारी दी गई है। पिछले पांच सालों में फिशिंग, स्कैनिंग, दूर्भावनपूर्ण कोड का निर्माण जैसे साइबर
सुरक्षा अपराधों में 76 फीसदी वृद्धि हुई है। साल 2011
में 28,127 से बढ़कर यह 2015 में 49,455 हो गया। राज्यसभा में एक प्रश्न के जवाब
में दी गई जानकारी के मुताबिक एटीएम, क्रेडिट/डेबिट कार्ड और
नेट बैंकिंग संबंधित धोखाधड़ी के 2014-15 में 13,083 मामले और 2015-16 (दिसंबर तक) में 11,997 मामले दर्ज किए गए। पिछले तीन वित्त वर्ष, 2012-13 से
2014-15 तक एटीएम, क्रेडिट/डेबिट कार्ड
और नेट बैंकिंग से कुल 226 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की गई।
दिल्ली उच्च न्यायालय की एक समिति की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2013 में कुल 24,630 करोड़ रुपये के साइबर अपराध दर्ज किए
गए जबकि विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में कुल 25,12,500 करोड़ रुपये के साइबर अपराध के मामले सामने आए हैं।
साफ्टवेयर सुरक्षा
समाधन उपलब्ध कराने वाली फर्म नोर्टन का अनुमान है कि व्यक्तिगत डेटा में सेंधमारी
के कारण 11.3 करोड़ भारतीयों को औसतन लगभग 16,558 करोड़ रुपये का
नुकसान उठाना पड़ा है। इस तरह की घटनाओं
से होने वाली मानसिक परेशानी अलग है। इसकी रपट के
अनुसार इस तरह के नुकसान का वैश्विक औसत 23,878 करोड़ रुपये
है। नोर्टन इंडिया के कंट्री मैनेजर ने कहा,‘ साइबर अपराधों
का बहुत बड़ा भावनात्मक असर होता है। 10 में से 8 लोगों का कहना है कि अगर उनकी व्यक्तिगत वित्तीय सूचनाओं में सेंध लगाई गई
तो वे तो टूट ही जाएंगे। वहीं 36 प्रतिशत लोगों का कहना है
कि ऑनलाइन अपराधों से प्रभावित होने के बाद वे उदास होते हैं।’ चोपड़ा ने कहा कि बीते एक साल में भारत की आनलाइन जनसंख्या का 48 प्रतिशत लगभग 11.3 करोड़
भारतीय आनलाइन अपराधों की चपेट में आए हैं। यह अध्ययन 17 देशों
में 17,125 उपकरणों को इस्तेमाल करने वालों की राय पर आधारित
है।
अब यह जरूरी है
कि साइबर अपराधों को रोकने के लिए वर्तमान कानून को कठोर किए जाने की जरूरत है।
विदेशों में भी साइबर अपराध होते है लेकिन वहां के कानून अपने देश के मुकाबले सख्त
होते है। ऐसा करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि अब बैंक से लेकर तमाम चीजें ऑनलाइन
होती चली जा रही है। ऐसे में संभावित खतरों को भांपकर कठोर पहल किए जाने की जरूरत
है क्योंकि ऑनलाइन का दायरा जिस कदर बढ़ा है उसी तरीके से धोखाधड़ी और साइबर
अपराधों में भी बेतहाशा इजाफा हुआ है। इसलिए यह जरूरी है कि समय रहते इन अपराधों
पर अंकुश लगाने के लिए नए सिरे से ठोस पहल की जाए।
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