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Wednesday, 28 December 2016

खरे तालाबों की पवित्रता और गाँधी-मार्ग के प्रहरी अनुपम मिश्र



स्मृतिशेष
खरे तालाबों की पवित्रता  और गाँधी-मार्ग के प्रहरी अनुपम मिश्र
प्रोफ़ेसर राम लखन मीना, राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय, अजमेर
गांधीवादी और मशहूर पर्यावरण विद, सुप्रसिद्ध लेखक, मूर्धन्य संपादक, छायाकार अनुपम मिश्र अब हमारे बीच नहीं रहे।19 दिसंबर 2016 की सुबह पांच बजकर चालीस मिनट पर एम्स अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली। वे 68 साल के थे। उनका जन्म महाराष्ट्र के वर्धा में सन् 1948 में सरला और भवानी प्रसाद मिश्र के घर में हुआ । दिल्ली विश्वविद्यालय से 1968 में संस्कृत पढ़ने के बाद गाँधी शांति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली, के प्रकाशन विभाग में सामाजिक काम और पर्यावरण पर लिखना शुरू किया। तब से आज तक वही काम, वहीं पर। गाँधी मार्ग पत्रिका का संपादन किया । अनेक लेख, और कई महत्वपूर्ण किताबें लिखी । जल संरक्षण पर लिखी गई उनकी किताब आज भी खरे हैं तालाबकाफी चर्चित हुई और देशी-विदेशी कई भाषाओं में उसका अनुवाद हुआ। "आज भी खरे हैं तालाब" को खूब प्यार मिला जिसकी दो लाख से भी अधिक प्रतियां बिकी । अनुपम मिश्र पिछले सालभर से कैंसर से पीड़ित थे। मिश्र के परिवार में उनकी पत्नी, एक बेटा, बड़े भाई और दो बहनें हैं। उनको इंदिरा गांधी राष्ट्रीय पर्यावरण पुरस्कार, जमना लाल बजाज पुरस्कार सहित कई पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है।
अपने पिता भवानी प्रसाद मिश्र के पदचिह्नों पर चलने वाले अनुपम जी की रचनाओं में  गाँधीवाद की स्वच्छता, पावनता और नैतिकता का प्रभाव तथा उसकी झलक उनकी कविताओं में साफ़ देखी जा सकती है। उनका अपना कोई घर नहीं था। वह गांधी शांति फाउंडेशन के परिसर में ही रहते थे। उनके पिता भवानी प्रसाद मिश्र प्रख्यात कवि थे। वे गांधी शांति प्रतिष्ठान के ट्रस्टी एवं राष्ट्रीय गांधी स्मारक निधि के उपाध्यक्ष थे। वे प्रतिष्ठान की पत्रिका गाँधी मार्ग के संस्थापक और संपादक रहे और अंतिम साँस तक  छोड़ा नहीं । उनकी अन्य चर्चित किताबों में राजस्थान की रजत बूंदेंऔर हमारा पर्यावरणहै। हमारा पर्यावरणदेश में पर्यावरण पर लिखी गई एकमात्र किताब है। अनुपम मिश्र चंबल घाटी में साल 1972 में जयप्रकाश नारायण के साथ डकैतों के खात्मे वाले आंदोलन में भी सक्रिय रहे। डाकुओं के आत्मसमर्पण पर प्रभाष जोशी, श्रवण गर्ग और अनुपम मिश्र द्वारा लिखी किताब चंबल की बंदूके गांधी के चरणों में' काफी चर्चित रही। पिछले कई महीनों से वे कैंसर से जूझ रहे थे, लेकिन मृत्‍यु की छाया में समानांतर चल रहा उनका जीवन पानी और पर्यावरण के लिए समर्पित ही रहा।
पर्यावरण-संरक्षण के प्रति जनचेतना जगाने और सरकारों का ध्यानाकर्षित करने की दिशा में वे तब से काम कर रहे थे, जब देश में पर्यावरण रक्षा का कोई विभाग नहीं खुला था। आरम्भ में बिना सरकारी मदद के उन्होंने देश और दुनिया के पर्यावरण की जिस तल्लीनता और बारीकी से खोज-खबर ली है, वह कई सरकारों, विभागों और परियोजनाओं के लिए भी संभवतः संभव नहीं हो पाया है। उनकी कोशिश से सूखाग्रस्त अलवर में जल संरक्षण का काम शुरू हुआ जिसे दुनिया ने देखा और सराहा । सूख चुकी अरवरी नदी के पुनर्जीवन में उनकी कोशिश काबिले तारीफ रही है। इसी तरह उत्तराखण्ड और राजस्थान के लापोड़िया में परंपरागत जल स्रोतों के पुनर्जीवन की दिशा में उन्होंने अहम काम किया । गांधी शांति प्रतिष्ठान दिल्ली में उन्होंने पर्यावरण कक्ष की स्थापना की । उन्होंने बाढ़ के पानी के प्रबंधन और तालाबों द्वारा उसके संरक्षण की युक्ति के विकास का महत्त्वपूर्ण काम किया । वे 2001 में दिल्ली में स्थापित सेंटर फार एनवायरमेंट एंड फूड सिक्योरिटी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। चंडी प्रसाद भट्ट के साथ काम करते हुए उन्होंने उत्तराखंड के चिपको आंदोलन में जंगलों को बचाने के लिये सहयोग किया था । वह जल-संरक्षक राजेन्द्र सिंह की संस्था तरुण भारत संघ के लंबे समय तक अध्यक्ष भी रहे । शिक्षा की सृजनात्मकता के महत्त्व को प्रतिपादित करने वाला ‘शिक्षा कितना सर्जन, कितना विसर्जन’ आलेख अमित छाप छोड़ता रहेगा  वहीं ‘पुरखों से संवाद जो कल तक हमारे बीच थे, वे आज नहीं हैं, की यादें तरोताज़ा करेगा । बरसों से काल के ये रूप पीढि़यों के मन में बसे- रचे हैं और रहेंगे । कल, आज और कल ये तीन छोटेछोटे शब्द कुछ लाख बरस का, लाख नहीं तो कुछ हजार बरसों का इतिहास, वर्तमान और भविष्य अपने में बड़ी सरलता एवं तरलता से समेटे हैं।
साहित्य अकादमी में नेमिचंद स्मृति व्याख्यान पर दिया दुनिया का खेलाभाषण अनुपम मिश्र के मिलन-संकोच  और अपरिचय की दीवार को नयी ऊंचाईयों पर सदैव रखेगा। साध्य, साधन और साधनाअगर साध्य ऊंचा हो और उसके पीछे साधना होतो सब साधन जुट सकते हैं। रावण सुनाए रामायणमें अभिव्यक्त काव्ययुक्ति सनातन धर्म से भी पुराना एक और धर्म है, वह है नदी धर्म गंगा को बचाने की कोशिश में लगे लोगों के लिए मिल का पत्थर साबित होगा और पहले उन्हेंइस धर्म को मानना पड़ेगा। क्या हमारा धर्म नदी के धर्म को फिर से समझ सकता है? प्रलय का शिलालेखनदियों के तांडव को सदैव प्रस्थापित करता रहेगा । सन् 1977 में अनुपम मिश्र का लिखा एक यात्रा वृतांत, ‘जड़ेंजड़ता की आधुनिकता को जड़ों की तरफ मुड़ने से पहले हमें अपनी जड़ता की तरफ भी देखना होगाझांकना होगा, झांकी इतनी मोहक है कि इसका वजन ढोना भी हमें सरल लगने लगता है। बजाय इसे उतार फेंकने केहम इसे और ज्य़ादा लाद लेते हैं अपने ऊपर । भाषा और पर्यावरणमें हमारी भाषा नीरस को अभिव्यक्त किया है क्योंकि हमारा माथा बदल रहा है।  
राजस्थानी संस्कृति से उनका विशेष लगाव रहा ल्हास खेलनेका भावार्थ स्वेच्छा से उत्सवपूर्वक सामूहिक श्रमदान करने की स्मृतियों को सदैव जीवंत रखेगा। आग लगने पर कुआं खोदनाके माध्यम से अकाल अकेले नहीं आता की संवेदनशीलता को कुशल चितेरे के रूप में उकेरा और कहा कि अकाल से पहले अच्छे विचारों; अच्छी योजनाएं, अच्छे काम का अकाल पड़ने लगता है। अनुपम जी के बिना अब हमें बदलते मौसम की रवानी से कौन सतर्क करेगा कि "मौसम बदलता था तो हमारे दादा दादी हमको कहते थे मौसम बदल रहा है थोड़ी सावधानी रखो, लेकिन आज जब धरती का मौसम बदल रहा है तो ऐसे दादा दादी बचे नहीं जो हमें बता सके कि मौसम बदल रहा है, इसके लिए थोड़ी सावधानी रखो। उल्टे दुनिया के दादा लोग ही मौसम में हो रहे इस बदलाव के लिए कारण हैं।"  वे धरती के बुखार को लेकर हमेशा चिंतित रहे कि धरती का बुखार न बढ़े इसके लिए तैयार रहने की जरूरत है। लेकिन जिस तरह की तैयारी दादा देश कर रहे हैं वह पर्यावरण को होनेवाली क्षति को कम नहीं करेगा बल्कि उनको उपभोग का एक नया मौका प्रदान कर देगा।"
इतना ही नहीं वे मन्‍ना, यानी की भवाई भाई (भवानी प्रसाद मिश्र) के मूल्‍यों की परछाई ही थे। भवानीप्रसाद की काव्यपंक्तियाँ ‘जिस तरह हम बोलते हैं उस तरह तू लिखऔर इसके बाद भी हम से बड़ा तू दिख।’ उनके लिए सदैव आधार वाक्य रही वे जैसा जीते थे, वैसा ही लिखते थे और दूसरों को भी वही सीख देते थे। पिता का मन उनके जीवन में उतर गया था।  उनका पूरा जीवन जैसा था, वैसा का वैसा उनके लिखे हुए में दिखता था। उन्‍होंने जीवन भर अपने बाल अपने हाथ से काटे। पिता मन्‍ना ने ही बाल काटना सिखाया था। जीवन को कम आवश्‍यकताओं के बीच परिभाषित करने वाले अनुपम जी ने कम के बीच ही जीवन को सदा भरा-पूरा रखा। उनका जीवन कम के बीच अपार की कहानी था। उनमें अद्भुत साहस था, ऐसा साहस केवल रेगिस्तानी इलाकों में रहने वाले और थके हुए जिंदगी भर पानी की खोज में जुटे रहने वाले यात्रियों में ही ढूंढा जा सकता है। समाजवादियों के साथ वे जुड़े थे पर सत्ता के समाजवाद को अपनी निष्कपट ईमानदारी के नजदीक फटकने तक नहीं दिया। अनुपम जी का यूं चले जाना एक बहुत बड़ी क्षति इसलिए है कि जिस गांधी मार्ग पर वे अपने स्नेहियों शुभचिंतकों की जमात को साथ लेकर चल रहे थे वह अब सूना हो जाएगा।

Monday, 26 December 2016

डिजिटल इण्डिया और ई-लेनदेन के बुनियादी सरोकार (Digital India and Basics of I-payment) प्रोफ़ेसर राम लखन मीना, राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय, अजमेर



डिजिटल इण्डिया और ई-लेनदेन के बुनियादी सरोकार 
Digital India and Basics of I-payment
प्रोफ़ेसर राम लखन मीना, राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय, अजमेर
 ‘द गार्जियन’ की ताज़ा रिपोर्ट्स के अनुसार स्वीडन दुनिया का सबसे पहला कैशलेस लेनदेन वाला देश माना जाता है जिसमें 96 प्रतिशत तक नक़द भुगतान  किये जाते हैं जिन्हें 2020 तक 0.05 फ़ीसदी तक किये जाने का लक्ष्य है । इसके बाद बेल्जियम में 93, फ़्रांस में 92, कनाडा में 90, ब्रिटेन में 89, आस्ट्रेलिया में 86,  प्रतिशत तक नक़द भुगतान किये जाते हैं। उसके बाद क्रमश: नीदरलैंड 85, अमेरिका 80, जर्मनी 76 और दक्षिण कोरिया का 70 फ़ीसदी के साथ नंबर आता है उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार प्रधानमंत्री की नोटबंदी की घोषणा तक भारत में केवल 2 फ़ीसदी कैशलेस लेनदेन किया जाता रहा है ।  
सवाल है कि भारत जैसे बड़े देश में शत प्रतिशत कैशलेश लेनदेन कैसे संभव है ? जहाँ 640,867 गांव हैं। देश की 68.84 फीसदी आबादी गांवों में रहती है।  40 फ़ीसदी लोग गरीबी रेखा के से नीचे रहते हैं। गाँवों में 94 फीसदी से अधिक लोग कम्पूटर से अनभिज्ञ हैं, यहाँ तक कि राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता दर मात्र 11.4 फीसदी है। भारत 84.6 फ़ीसदी कृषि और कृषि-जनित व्यवसाय प्रधान देश है, इससे किसानों को कैसे मदद मिलेगी? विश्व में सबसे ज्यादा निरक्षर वयस्क भारत में हैं। यह संख्या दुनिया भर की निरक्षर आबादी का 37 प्रतिशत है। क्या वो डिजिटल इंडिया का मतलब भी समझते हैं? मोदी सरकार स्मार्टफोन चलाने और कैशलेस बनाने के दिन में सपने देख रही है। गांवों में रहने वालों की बात तो छोड़िए देश के महानगरों में एटीएम की लाइन में लगे 20-25 फीसदी लोग पैसे निकालने के लिए दूसरे की मदद ले रहे हैं। वे अक्सर कागज के टुकड़े पर पिन नंबर लिखकर रखे होते हैं। डिजिटल निरक्षरता के कारण ही भारत को हर साल करीब 27 खरब रुपए का नुकसान सहना पड़ता है इतना ही नहीं देश में 40 फीसदी से अधिक जनप्रतिनिधि अपने मोबाईल सेटों से एसएमएस तक नहीं कर सकते हैं, ऐसे में 'डिजिटल ट्रांजेक्शन" कितना सुरक्षित है समझा जा सकता है।   
सपने देखने का हक़ सभी को है, सपने देखने के हक़ को छीना भी नहीं जा सकता है और छीनना चाहिए भी नहीं वरना ये आम जनता के मौलिक अधिकारों का हनन होगा क्योंकि आम इंसान अपनी जिंदगी का तीन चौथाई हिस्सा सपने देखकर ही पूरा करता है फ़िर भी, प्रधानमंत्री की मंशाओं के अनुरूप देश की समृद्ध अर्थव्यवस्था के लिए कैशलेस लेनदेन (अंतरण) के विभिन्न उपायों को अमल में लाने की आवश्यकता है और प्रत्येक जिले, तालुके एवं गाँव-ढाणियों  में डिजिटल आर्मी का निर्माण करते हुए इस दिशा में ई-क्रांति की सृजना करनी होगी ताकि देश सही मायनों में कैशलेस व डिजिटल इंडिया बन सके। लेकिन इसमें सबसे बड़ी बाधा है कि नेशनल ऑप्टिक फ़ाइबर नेटवर्क प्रोग्राम की कछुआ चाल जो अभी भी पाँच-सात साल पीछे चल रही है। सरकार को ये समझना होगा कि जब आप गांव-गांव तार बिछाने जाएंगे तो आप उन लोगों को ये काम नहीं सौंप सकते जो पिछले 50 साल से कुछ और बिछा रहे हैं। सरकार को वो लोग लगाने होंगे जो ऑप्टिक फ़ाइबर नेटवर्क की तासीर समझते हैं।
नीति आयोग की कार्ययोजना के अनुसार एंड्राईड फोन को माईक्रोएटीएम की भांति उपयोग करने के लिए एक विशिष्ट डिवाईस विकसित किया जा रहा है जो बायोमेट्रिक पहचान का काम करेगा और यह जल्द ही देशभर में आम उपयोग में आने लगेगा, किंतु यह अभी तक बिलकुल आरंभिक दौर में ही है । इसके माध्यम से बैंक के क्रेडिट और डेबिट कार्ड्स, यूएसएसडी मोबाईल बैंकिंग, आधार के माध्यम से भुगतान, यूपीआई के तहत बैंकएप्पस का प्रयोग, ई-वालेट्स तथा पोस (POS) के माध्यम से कैशलेस अंतरण हो सकेगा। डिजिटल इंडिया के तहत सरकारी विभागों को देश की जनता से जोड़ना है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना भी है कि बिना कागज के इस्तेमाल के सरकारी सेवाएं इलेक्ट्रॉनिक रूप से जनता तक पहुंच सकें।
इस योजना के उद्देश्यों में  ग्रामीण इलाकों को हाई स्पीड इंटरनेट के माध्यम से जोड़ने के साथ-साथ डिजिटल आधारभूत ढाँचे का निर्माण करना, इलेक्ट्रॉनिक रूप से सेवाओं को जनता तक पहुंचाना और डिजिटल साक्षरता प्रमुख हैं। योजना को 2019 तक कार्यान्वयित करने का लक्ष्य है। इसमें एक टू-वे प्लेटफॉर्म का निर्माण किया जाएगा जहाँ सेवा प्रदाता और उपभोक्ता को लाभ होगा। किंतु, इसमें लीगल फ्रेमवर्क, गोपनीयता का अभाव, डाटा सुरक्षा नियमों की कमी, नागरिक स्वायत्तता हनन, तथा भारतीय ई-सर्विलांस के लिए सटीक और कारगर निगरानी की कमी तथा भारतीय साइबर असुरक्षा जैसी कई महत्वपूर्ण कमियाँ भी हैं। डिजिटल इंडिया को कार्यान्वयित करने से पहले इन सभी कमियों को दूर करना होगा।
'भारत ब्रॉडबैंड नेटवर्क लिमिटेड' नेशनल ऑप्टिकल फाइबल नेटवर्क जैसी परियोजना की कार्यान्विति में तेजी लानी होगी क्योंकि यही डिजिटल इंडिया कार्यक्रम की देखरेख करेगा । बीबीएऩएल ने यूनाइटेड टेलीकॉम लिमिटेड को 2,50,000 गाँवों को एफटीटीएच ब्रॉडबैंड आधारित तथा जीपीओएन के द्वारा जोड़ने का आदेश दिया है। यदि सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो यह 2017 के अंत तक (अपेक्षित) पूर्ण होने वाली डिजिटल इंडिया परियोजना को सभी आधारभूत सुविधाएं मुहैया कराएगी। यह भी माना जा रहा है कि ई-कॉमर्स डिजिटल इंडिया प्रोजेक्ट को सुगम बनाने में मदद करेगा। जबकि, इसे कार्यान्वित करने में कई चुनौतियाँ और कानूनी बाधाएं भी आ सकती हैं। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि देश में डिजिटल इंडिया सफल तबतक नहीं हो सकता जबतक कि आवश्यक बीसीबी ई-गवर्नेंस को लागू न किया जाए तथा एकमात्र राष्ट्रीय ई-शासन योजना (National e-Governance Plan) का अपूर्ण क्रियान्वयन भी इस योजना को प्रभावित कर सकता है।
डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का शुभारंभ 01 जुलाई, 2015 को प्रधानमंत्री द्वारा लालकिले के भाषण में किया गया।  यह प्रधानमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट है।  इसके लिए सरकार ने 1,13,000 करोड़ का बजट रखा था । डिजिटल इंडिया योजना के जरिये 2017 तक हर गांव और शहर को इंटरनेट से जोड़ने का प्लान है, ताकि लोग कागजी काम पर आश्रित रहने के बजाय अपने ज्यादातर काम ऑनलाइन करवा सकें। पर, अब तक भारत कितना डिजिटल हुआ है सबको पता है। वस्तुत: यह योजना अपने उद्देश्यों से पूर्णतया भटक चुकी है क्योंकि विभागों या न्यायालयों में समेकित एकीकृत सेवाएं, ऑनलाइन और मोबाइल प्लेटफार्मों के माध्यम से वास्तविक समय पर उपलब्ध सेवाएँ, नागरिकों के सभी अधिकार पोर्टेबल और क्लाउड पर उपलब्ध, डिजिटल सेवाओं में परिवर्तन द्वारा व्यापार कर की सुविधा में सुधार, वित्तीय लेनदेन को इलेक्ट्रॉनिक और नगद रहित बनाना, निर्णय समर्थन प्रणाली और विकास के लिए भू-स्थानिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) का इस्तेमाल जैसे इसके लक्ष्य जमीनी स्तर पर कहीं भी दिखलायी नहीं पड़ते हैं
वहीं, भारत के साइबर सुरक्षा चलन ने भारतीय साइबर स्पेस की कमियों को बख़ूबी उजागर किया है।  यहाँ तक कि अबतक राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा योजना 2013 अभी तक क्रियान्वित नहीं हो पायी है। इन सभी वर्तमान परिस्थियों में महत्वपूर्ण आधारभूत सुरक्षा का प्रबंधन करना भारत सरकार के लिए कठिन कार्य होगा तथा इस प्रोजेक्ट में उचित ई-कचरा प्रबंधन के प्रावधान की भी कमी है। ऑनलाइन या साइबर फ्रॉड एक अलग तरह का अपराध होता है इसलिए इससे निपटने के लिए अलग अदालत बनाई गई है लेकिन बिना जज के अदालत का कोई मतलब नहीं और जब जज ही नियुक्त नहीं हो तो न्याय की कामना करना ख्याली पुलावों जैसा ही है, एसी व्यवस्था का कोई भी मतलब नहीं रहेगा। सटीक और कारगर व्यवस्थाओं के नहीं होने के कारण अभी तक देश के किसी भी राज्य में दर्ज साइबर अपराधों के मामलों एवं न्यायिक अधिकारी के फैसले को दिल्ली के साइबर अपीलेट ट्रिब्यूनल में चुनौती दी जाती  है यानी अगर तमिलनाडू, पश्चिम बंगाल, कश्मीर या राजस्थान में भी आपके साथ कोई धोखाधड़ी हो तो न्यायिक अधिकारी के फैसले को दिल्ली में ही चुनौती दें सकते हैं । आमतौर पर अगर आप सीधे हाइकोर्ट में भी जाते हैं तो कोर्ट मामला साइबर अपीलेट ट्रिब्यूनल में भेज देते हैं ।
देश में आजकल सरकार खूब डिजिटल इंडिया और ऑनलाइन पैसे के लेनदेन के लिए लोगों को शिफ़्ट करने को मजबूर तो कर रही है लेकिन अगर ऑनलाइन दुनिया में किसी के साथ कोई धोखाधड़ी हो जाए तो उसके लिए न्यायालय की क्या व्यवस्था है, उससे मन सिहर जाता है! और कई बुनियादी सवाल खड़े करता है  एक, प्रधानमंत्री की नाक के नीचे दिल्ली के कनॉट प्लेस में साइबर अपीलेट ट्रिब्यूनल में 30 जून 2011 के बाद किसी जज की नियुक्ति नहीं हुई है और 2011 के बाद कोई फैसला भी इस अदालत से नहीं आया है।  दूसरा, लाख कोशिशों के वाबजूद सामान्य न्याय के लिए तो आम आदमी सबूत नहीं जुटा पाता फ़िर डिजिटल सबूतों के लिए तो उसका क्या हश्र होने वाला है? मोदी सरकार के डिजिटल इंडिया और कैशलेस सोसाइटी के दावे की यही हक़ीक़त है। तीसरा, लोगों को इस तरफ धकेला तो जा रहा है लेकिन न्याय और सुरक्षा के इंतज़ाम कौन और कब करेंगे यक्ष प्रश्न हैं!  
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अब तक प्रोत्साहनों और घोषणाओं का तो अम्बार लगा दिया है, किंतु अब उन सभी को पूरा करने की चुनौती का सामना भी करना पड़ेगा जिसमें दस क्षेत्रों; ब्रॉडबैंड हाइवे, सबके पास फोन की उपलब्धता, पब्लिक इंटरनेट एक्सेस प्रोग्राम, ई-गवर्नेंस, ई-क्रांति, ई-लेनदेन, इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन, आईटी फ़ॉर जॉब्स के ज़रिए नौकरियां पैदा करने के लिए हर ब्लॉक स्तर पर रूरल बीपीओ खोलने होंगे तथा अर्ली हार्वेस्ट प्रोग्राम पर ध्यान देना लाजमी होगा। गांव में डिजिटल तकनीक को लेकर अब तक जो काम हुआ है, उसके आधार पर कह सकते हैं कि अगर सब-कुछ सटीक और ठीक उस तरह हो जाए जैसा कागज़ों पर दिखता है तब भी भारतीय परिस्थितियों में इन लक्ष्यों को पूरा होने में कम से कम दस साल लगेंगे। निजता सुरक्षा, डाटा सुरक्षा, साइबर कानून, टेलीग्राफ, ई-शासन तथा ई-कॉमर्स आदि के क्षेत्र में भारत का बहुत ही कमजोर नियंत्रण है। अधिकांश कानूनी विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि सटीक, कारगर और पुख्ता साइबर सुरक्षा के बिना ई-प्रशासन, ई-लेनदेन और डिजिटल इंडिया व्यर्थ है।
 

Tuesday, 13 December 2016

भारत में नोटबंदी, डिजिटल क्रांति और साइबर सुरक्षा : प्रोफ़ेसर राम लखन मीना


भारत में नोटबंदी,  डिजिटल क्रांति और साइबर सुरक्षा : प्रोफ़ेसर राम लखन मीना

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नोटेबंदी की अचानक घोषणा द्वारा देश में प्रचलित 500 और 1000 रुपये के नोटों को खत्म करने का ऐलान किया गया, जिसका उद्देश्य केवल काले धन पर नियंत्रण ही नहीं बल्कि जाली नोटों से छुटकारा पाना भी था । किंतु, घोषणा के एक महीने बाद भी देश के मेहनकश किसानों, मजदूरों, आम जन को अभी तक रहत नहीं मिली है । इस घटनाक्रम ने एक नयी बहस की भी शुरूआत कर दी और देश में डिजिटल क्रांति और प्लास्टिक मनी के दौर में प्रवेश कर रहा है, पर क्या देश के अंदरूनी हालात इसकी इजाजत देते हैं ?  भारत जैसे विकासशील देश में जिसकी सत्तर फीसद जनसंख्या दूर-दराज देश के गांवों और ढाणियों  में रहती हैं, 80 फीसदी से भी अधिक जनसंख्या डिजिटली निरक्षर है उस स्तिथि में  क्या यह सब संभव हो पायेगा ?
इंटरनेट ने अगर हमारी जिंदगी आसान की है तो दूसरी तरफ कई मुश्किलें भी पैदा की है। चंद सेकेंडों का क्लिक हमें हजार सूचनाएं को आसानी से मुहैया कराता है। लेकिन साइबर अपराध इंटरनेट की दुनिया पर काला धब्बा बनकर मंडरा रहे है। जबसे इंटरनेट का जन्म हुआ तब से यह मुश्किल नासूर का शक्ल अख्तियार कर चुका है। साइबर अपराधों से लगभग पूरी दुनिया परेशान है और इसके बचाव के तरीके भी खोजे जा रहे हैं । लेकिन इन अपराधों पर अंकुश लगने की बजाए यह तेजी से बढ़ते चले जा रहे है। बहुत से साइबर अपराध, कंप्यूटर का प्रयोग करके किये जाते हैं पर उनका लक्षय कंप्यूटर या सर्वर नहीं होता है। इस तरह के अपराधों में साइबर आतंकवाद; साइबर गतिविधियों के द्वारा धार्मिक, राजनैतिक उन्माद पैदा करना, आर्थिक अपराध;  क्रेडिट कार्ड से गलत तरह से पैसा निकाल लेना या ऑनलाइन व्यापार या बैकिंग में धोखाधडी करना,  फिशिंग; अक्सर कुछ संदिग्ध ईमेल मिलते है जिससे प्रतीत होता है कि वे किसी बैंक में या किसी अन्य संस्था की बेब साइट से हैं। यह आपके बैंक के खाते या अन्य व्यक्तिगत सूचना पूछने का प्रयत्न करते हैं। ये सारी ई-मेल फर्जी है और यह आपकी व्यक्तिगत सूचना को जानकर कुछ गड़बड़ी पैदा कर फिशिंग करते हैं, साइबर छल; अक्सर ई-मेल, एसएमएस मिलते लालच देकर धोखाधडी  की जाती है, साइबर जासूसी इसे एडवेयर या स्पाईवेयर जाता है जिसमें आपकी व्यक्तिगत सूचना एकत्र कर आपके कंप्यूटर या मोबाईल को धीमा कर देते हैं, पहचान की चोरी; या इलेक्ट्रानिक हस्ताक्षर को हैक करना, स्पैम; अनचाही ई-मेल, स्पिम; अन्तरजाल के बातों के दौरान अनचाही बातें, साइबर स्टॉकिंग; अन्तरजाल पर पीछा करना या तंग करना, अश्लीलता : अश्लील ईमेल, अश्लील चित्र, चित्रों को बदल कर किसी अन्य का चित्र लगा देना इत्यादि शामिल हैं ।
 भारत में पिछले 10 सालों में (2005-14) साइबर अपराध के मामलों में 19 गुना और विगत तीन वर्षों में 350 फीसदी से भी अधिक बढ़ोतरी हुई है। इंटरनेट पर दुर्भावनापूर्ण गतिविधियोंके मामले में भारत का अमेरिका और चीन के बाद तीसरा स्थान है। वहीं, दुर्भावनापूर्ण कोड के निर्माण में भारत का स्थान दूसरा और वेब हमले और नेटवर्क हमले के मामले में क्रमश: चौथा और आठवां स्थान है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े कहते हैं कि साइबर अपराधियों की गिरफ्तारी में 9 गुना बढ़ोतरी हुई है। साल 2005 में जहां 569 साइबर अपराधी पकड़े गए थे, वहीं 2014 में इनकी संख्या 5,752 हो गई। वहीं, इस दौरान भारत में इंटरनेट प्रयोक्ताओं का आंकड़ा बढ़कर 40 करोड़ हो गया, जिसके दिसंबर 2016 तक 58.2 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है। 2014 में कुल 9,622 साइबर मामले दर्ज किए गए जो कि साल 2013 से 69 फीसदी अधिक है। इंडियास्पेंड की रिपोर्ट के मुताबिक पेरिस की गैर सरकारी संस्था द्वारा जारी साल 2015 की प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत का स्थान 136वां है, तुर्की का 149वां और रूस का 152वां है। भारत में साइबर अपराधों में मुख्यत: अश्लीलता, धोखाधड़ी और यौन शोषण शामिल है। 2014 में वित्तीय धोखाधड़ी से जुड़े कुल 1,736 साइबर मामले दर्ज किए गए। महाराष्ट्र में सबसे अधिक साइबर मामले साल 2014 में 1,879 दर्ज किए गए, जबकि इससे पिछले साल कुल 907 मामले दर्ज किए गए थे। उसके बाद उत्तर प्रदेश में (1,737) कर्नाटक (1,020), तेलंगाना (703) और राजस्थान (697) का नंबर है। आईटी अधिनियम और भारतीय दंड संहिता के तहत दर्ज मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है। 
आईटी अधिनियम के तहत दर्ज मामलों 2011 से 2015 के लिए 200 से अधिक% की वृद्धि हुई है । 2013 और 2014 के बीच आईटी एक्ट के तहत साइबर अपराधों की संख्या में लगभग 70% वृद्धि हुई थी। भारतीय दंड संहिता के तहत दर्ज मामलों 2011 और 2015 के बीच की अवधि के दौरान अधिक से अधिक 7 गुना की वृद्धि हुई है। इसी तरह की प्रवृत्ति गिरफ्तार किए गए लोगों की संख्या में बढ़ोतरी दर्ज हुई है। सरकार ने भी इस तरह के अपराधों की संख्या में प्रौद्योगिकी, स्मार्ट फोन और जटिल अनुप्रयोगों, और व्यवसायों के लिए साइबर स्पेस के उपयोग में वृद्धि सहित उपकरणों की शुरूआत इस तरह हुई वृद्धि को स्वीकार किया है । 2011-2015 की अवधि  में साइबर अपराध की घटनाओं के साथ राज्यों की सूची में कई  आश्चर्यजनक बदलाव आया है। महाराष्ट्र में 5 साल में अधिकतम 5900 मामलों दर्ज हुए हैं वहीँ ऐसे 5000 मामलों के साथ उत्तर प्रदेश के दूसरे स्थान पर है। कर्नाटक में 3500 से अधिक मामलों के साथ तीसरे नंबर पर हैं। नीचे आबादी और इंटरनेट पैठ के साथ अपेक्षाकृत 10 छोटे राज्यों कर रहे हैं।
2016 के पहले तीन महीनों में 8,000 से ज्यादा वेबसाइटों को हैक किया गया तथा 13,851 स्पैम उल्लंघन की जानकारी मिली है। हाल ही में राज्यसभा में एक प्रश्न के जवाब में यह जानकारी दी गई है। पिछले पांच सालों में फिशिंग, स्कैनिंग, दूर्भावनपूर्ण कोड का निर्माण जैसे साइबर सुरक्षा अपराधों में 76 फीसदी वृद्धि हुई है। साल 2011 में 28,127 से बढ़कर यह 2015 में 49,455 हो गया। राज्यसभा में एक प्रश्न के जवाब में दी गई जानकारी के मुताबिक एटीएम, क्रेडिट/डेबिट कार्ड और नेट बैंकिंग संबंधित धोखाधड़ी के 2014-15 में 13,083 मामले और 2015-16 (दिसंबर तक) में 11,997 मामले दर्ज किए गए। पिछले तीन वित्त वर्ष, 2012-13 से 2014-15 तक एटीएम, क्रेडिट/डेबिट कार्ड और नेट बैंकिंग से कुल 226 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की गई। दिल्ली उच्च न्यायालय की एक समिति की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2013 में कुल 24,630 करोड़ रुपये के साइबर अपराध दर्ज किए गए जबकि विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में कुल 25,12,500 करोड़ रुपये के साइबर अपराध के मामले सामने आए हैं।
साफ्टवेयर सुरक्षा समाधन उपलब्ध कराने वाली फर्म नोर्टन का अनुमान है कि व्यक्तिगत डेटा में सेंधमारी के कारण 11.3 करोड़ भारतीयों को औसतन लगभग 16,558 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ा है।  इस तरह की घटनाओं से होने वाली मानसिक परेशानी अलग है।  इसकी रपट के अनुसार इस तरह के नुकसान का वैश्विक औसत 23,878 करोड़ रुपये है। नोर्टन इंडिया के कंट्री मैनेजर ने कहा,‘ साइबर अपराधों का बहुत बड़ा भावनात्मक असर होता है। 10 में से 8 लोगों का कहना है कि अगर उनकी व्यक्तिगत वित्तीय सूचनाओं में सेंध लगाई गई तो वे तो टूट ही जाएंगे। वहीं 36 प्रतिशत लोगों का कहना है कि ऑनलाइन अपराधों से प्रभावित होने के बाद वे उदास होते हैं। चोपड़ा ने कहा कि बीते एक साल में भारत की आनलाइन जनसंख्या का 48 प्रतिशत लगभग 11.3 करोड़ भारतीय आनलाइन अपराधों की चपेट में आए हैं। यह अध्ययन 17 देशों में 17,125 उपकरणों को इस्तेमाल करने वालों की राय पर आधारित है।
अब यह जरूरी है कि साइबर अपराधों को रोकने के लिए वर्तमान कानून को कठोर किए जाने की जरूरत है। विदेशों में भी साइबर अपराध होते है लेकिन वहां के कानून अपने देश के मुकाबले सख्त होते है। ऐसा करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि अब बैंक से लेकर तमाम चीजें ऑनलाइन होती चली जा रही है। ऐसे में संभावित खतरों को भांपकर कठोर पहल किए जाने की जरूरत है क्योंकि ऑनलाइन का दायरा जिस कदर बढ़ा है उसी तरीके से धोखाधड़ी और साइबर अपराधों में भी बेतहाशा इजाफा हुआ है। इसलिए यह जरूरी है कि समय रहते इन अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए नए सिरे से ठोस पहल की जाए।