ONLINE Pageviewers

Saturday, 24 October 2015

आओ देश भर में हो रहे दलित- उत्पीड़न के विरोध में मिलकर आवाज उठाएं...

आओ देश भर में हो रहे दलित- उत्पीड़न के विरोध में मिलकर आवाज उठाएं...
वैसे तो दलित-उत्पीड़न की घटनाएं हमारे दैनंदिन जीवन का अंग बन चुकी हैं, फिर भी बीच-बीच में ऐसी कुछ घटनाएं घट जाती हैं कि आमतौर पर निर्लिप्त रहने वाला समाज चिंतित हो उठता है। मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल के लगभग दो वर्षों का सफर पूरा कर लिया है और देश में उत्तारोतर भय का वातावरण बढ़ता जा रहा है, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि निरंतर तार-तार हो रही है ।
यदि सिर्फ दलित उत्पीड़न की घटनाओं को देखा जाए तो पिछले दो वर्षो में दलितों का सामाजिक बहिष्कार, दलित महिलाओं के साथ बलात्कार, उनकी बेदखली आदि घटनाएं हुई हैं वहीं नन्हें नौनिहालों को भी जिंदा जलाया जा रहा है जो बहुत ही शर्मनाक हैं। ऐसी घटनाओं का सिलसिला थमा नहीं है और देश के कर्इ हिस्सों में विशेष रूप से भाजपा शासित राज्यों में दलितों पर अत्याचार दिन दूनी रात चौगुनी गति से बढ़ रहे हैं ।
ऐसी बहुत ही कम घटनाओं की जानकारी भी हमें मिलाती है वह भी जब उत्पीड़ित दलित किसी तरह जिला प्रशासन तक पहुँच पाते हैं या उनके बारे में किसी स्रोत से देर-सवेर जानकारी मिलती है। घटनाएं जब हमारे सामने होती हैं तब वह कई दिन पुरानी भी हो चुकी होती है। फरीदाबाद में बच्चों को जिंदा जलाना, नोएडा में एक दलित परिवार की महिलाओं सहित परिवार के अन्य सदस्यों को पुलिस की मौजूदगी में नंगा करना जैसी लोमहर्षक घटनाओं ने तो अमानवीयता की सारी हदें पार कर दी... भारतीय सभ्य समाज के जागरुक नागरिक के रूप हम इसकी घोर निंदा करते हैं...
यह विडम्बना नहीं तो क्या है कि हमारा सिस्टम एक ढोंगी साधु के सपने को पूरा करने के लिए सोने की खोज में फावड़ा-कुदाल लेकर दौड़ पड़ता है,करोड़ों खर्च भी कर देता है जिसमें कुछ भी हाथ नहीं लगता और बाबा अंबेडकर के समतावादी सपने को पूरा करने की संवैधानिक प्रतिबद्धता के प्रति उदासीन रहता हैऔर फूटी कोढ़ी भीखर्च नहीं करता है...
आज के भारत का सुखद पहलू यह है कि मंगल मिशन के तहत मंगलयान का सफल परीक्षण करके विज्ञान के क्षेत्र में हम दुनिया के सामने मिसाल बन रहे हैं और दुखद पहलू यह है कि समाज में मनुवादी मिशन के मंसूबों ने एक ऐसा मनोरोगी वर्ग पैदा कर दिया है, जो अपने ही देश, समाज एवं बस्तियों में जन्में दलितों एवं आदिवासियों को प्रताड़ित करने में गर्व का अनुभव करता है...
वस्तुतः वह गर्व नहीं शर्मिंदगी की पराकाष्ठा है